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University of Calcutta. 20th Sept. 1984
-SATYA RANJAN BANERJEE
वर्धमान जीवनकोश, द्वितीय खण्ड पर प्राप्त समीक्षा
डा० ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ
यह युग विधिवद्ध खोज व शोध का है। अन्वेषक कार्य को सहज और सुगम करने के लिए ही विभिन्न प्रकार के संदर्भ ग्रन्थों की बड़ी उपयोगिता है । इस संदर्भ ग्रन्थों से भी अधिक उपयोगिता है वर्गीकृत कोषों की । वर्गीकृत कोश ग्रन्थ जैसा कि
वर्धमान जीवन कोश द्वितीय खण्ड, पूर्व प्रकाशित सभी ग्रन्थों से भिन्न है ।
इस कार्य के लिए आगम ग्रन्थ उनकी टीकायें, श्वेताम्बर व दिगम्बर आगमेतर ग्रन्थ, कुछ बौद्ध एवं ब्राह्मण्य ग्रन्थ एवं परवर्तीकालीन कोश, अभिधान आदि का भी उपयोग किया है । इस खण्ड में उनके ३३ या २७ भवों का विवरण जो कि श्वेताम्बर व दिगम्बर परम्परा से लिया गया है । इससे तुलनात्मक अध्ययन सुगम ही हो जाता है । इसके अतिरिक्त इसमें भगवान् महावीर के पाँचों कल्याणक, नाम एवं उपनाम, उनकी स्तुतियाँ, समवसरण, दिव्यध्वनि, संघविवरण, इन्द्रभृति आदि ग्यारह गणधरों का पृथक्पृथक् विवरण आदि संकलित है । आर्या चन्दना का भी विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया
गया है ।
इस भाग में संकलित अनेक विषय बहुधा प्रथम भाग में संकलित विषयों के परिपूरक है । विषयों को इसमें अंतर्जातीय दशमलव के रूप में विभाजित व संकलित किया गया है जैसा कि सम्पादकों ने उपरोक्त वर्गीकृत कोश ग्रन्थों में किया है।
विद्वानों अन्वेषकों के लिए तीर्थंकर भगवान् महावीर के इस भाँति के वर्गीकृत
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