Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 527
________________ ( ४४४ ) be used by all scholars who want to work on Jainism, particularly on Mahavira's life. The book is well-printed and carefully executed. The printing mistakes are exceptionally few. The book is well bound as well. I hope this book will receive good demand from the libraries of the world. University of Calcutta. 20th Sept. 1984 -SATYA RANJAN BANERJEE वर्धमान जीवनकोश, द्वितीय खण्ड पर प्राप्त समीक्षा डा० ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ यह युग विधिवद्ध खोज व शोध का है। अन्वेषक कार्य को सहज और सुगम करने के लिए ही विभिन्न प्रकार के संदर्भ ग्रन्थों की बड़ी उपयोगिता है । इस संदर्भ ग्रन्थों से भी अधिक उपयोगिता है वर्गीकृत कोषों की । वर्गीकृत कोश ग्रन्थ जैसा कि वर्धमान जीवन कोश द्वितीय खण्ड, पूर्व प्रकाशित सभी ग्रन्थों से भिन्न है । इस कार्य के लिए आगम ग्रन्थ उनकी टीकायें, श्वेताम्बर व दिगम्बर आगमेतर ग्रन्थ, कुछ बौद्ध एवं ब्राह्मण्य ग्रन्थ एवं परवर्तीकालीन कोश, अभिधान आदि का भी उपयोग किया है । इस खण्ड में उनके ३३ या २७ भवों का विवरण जो कि श्वेताम्बर व दिगम्बर परम्परा से लिया गया है । इससे तुलनात्मक अध्ययन सुगम ही हो जाता है । इसके अतिरिक्त इसमें भगवान् महावीर के पाँचों कल्याणक, नाम एवं उपनाम, उनकी स्तुतियाँ, समवसरण, दिव्यध्वनि, संघविवरण, इन्द्रभृति आदि ग्यारह गणधरों का पृथक्पृथक् विवरण आदि संकलित है । आर्या चन्दना का भी विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है । इस भाग में संकलित अनेक विषय बहुधा प्रथम भाग में संकलित विषयों के परिपूरक है । विषयों को इसमें अंतर्जातीय दशमलव के रूप में विभाजित व संकलित किया गया है जैसा कि सम्पादकों ने उपरोक्त वर्गीकृत कोश ग्रन्थों में किया है। विद्वानों अन्वेषकों के लिए तीर्थंकर भगवान् महावीर के इस भाँति के वर्गीकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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