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( ४३४ ) भगवती सूत्रवृत्ति-अभवदेव सूरि, १२वीं सदी। (व्याख्या प्रशप्ति) प्रकाशकऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर सभा सन १६४७ ।
भत्त पइयाप्रकीर्णक - प्रकीर्णकागम भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति-शुभशीलगणि । युजुर्वेद-वैदिक मंत्रालय, अजमेर । युक्त्यनुशासनम् - वर्धमान देशना-शुभवर्धनगणि। वसुदेवहिंडी-संघदासगणि, ५वीं सदी। विविध तीर्थ-कल्प-जिनप्रम सूरि, १३वीं सदी । व्यवहार सूत्र-वृत्ति-मलयगिरि, १२वीं सदी । समत्त सत्तति-आचार्य हरिभद्र सूरि, छठी सदी । सिरिसिरि वालकहा-बशेखर सूरि, १३वीं सदी ।
लेश्या-कोश पर विद्वानों की सम्मति स्व० प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी संघषी, अहमदाबाद लेश्या-कोश के प्रारम्भिक ३४ पृष्ठों को पूरा सुन गया हूँ। अगला भाग अपेक्षा के अनुसार देखा है। पर उसका पूरा ख्याल आ गया है। प्रथम तो यह बात है कि एक व्यापारिक फिर भी अस्वस्थ तबीयतवाला इतना गहरा श्रम करे और शास्त्रीय विषयों में पूरी समझ के साथ प्रवेश करे यह जैन समाज के लिए आश्चर्य के साथ खुशी का विषय है। आपने कोशों की कल्पना को मूर्त बनाने का जो संकल्प किया है वह और भी आश्चर्य तथा आनन्द का विषय है। इतना बड़ा भारी जवाबदेही का काम निर्विघ्न पूरा हो–यही कामना है।
Dr. A. N. Upadhya, M. A. D. Litt., Shivaji University. Kolhapur.
"I have read the major portion of this KOSA. You are to be congratulated on having brought out a valuable source book on the Lesya Doctrine. I appreciate your 'methodology and have all praise for the pains you have taken in collecting and systematically
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