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व्याकरण, प्रश्नोत्तर के द्वारा गोशालक निरुत्तर कर दिया गया है। जिसमें गोशालक अत्यन्त कुपित यावत् क्रोध से प्रज्वलित हो रहा है, किन्तु श्रमण निम्रन्थों के शरीर को कुछ भी पीड़ा उपद्रव एवं अवयव छेद नहीं कर सका, तब वे आजीविक, मंखलिपुत्र गोशालक के आश्रय से निकलकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अभय में आये और तीन वार प्रदक्षिणा करके वंदना नमस्कार किया तथा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का आश्रय लेकर विचरने लगे और कुछ आजीविक स्थविर, मंखलिपुत्र गोशालक का अभिय लेकर विचरने लगे । और कुछ आजीविक स्थविर मंखलिपुत्र गोशालक का आश्रय लेकर ही विचरते रहे ।
'१६ गोशालक की दुर्दशा
१ निःश्वसन् दीर्घमुष्णं च दंष्ट्रालोमानि खोश्खनन् । पदाभ्यां ताडयन्नुर्थी हतोऽस्मीति मुहब्रुवन् ॥ ४२८ ॥ निष्क्रम्य स्वामिसदसो दस्युचद्वीक्षितो जनैः । हालाहला कुंभकार्या गोशालोऽगमदापणम् ॥ ४२९ ।।
गोशालक की दुर्दशा
२ तप णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्लट्ठाए हध्वमागए तमट्ठ असाहेमाणे रूदाई पलोरमाणे, दीहुण्हाइ णीससमाणे, दाढियाए लोमाए लुंचमाणे अबटुं कंड्रयमाणे पुर्यालि पफोडेमाणे, हत्थे विणिद्धणमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमि कोट्टमाणे, 'हा हा अहो ! हओ अहिमस्सि त्ति कट्ट समणस्स भगवओ महावीरस्सं अंतियाओ कोट्टयाओ चेहयाओ पडिणिक्खणइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी णयरी, जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेब उवागच्छर, तेणेव उवागच्छित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावगंसि अंबकूण महत्थगए, मज्जपाणगं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे अभिक्खणं - माणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे, सीयलपणं मट्टियापाणपणं आयंचणि उदपणंगायाहं परिचिमाणे बिहरह
- त्रिशलाका पर्व २० सगं ८
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- मग० श १५
मंखलिपुत्र गोशालक जिस कार्य को सिद्ध करने के लिए आया था, वह सिद्ध नहीं कर सका, तब वह दिशाओं की ओर लंबी दृष्टि फेंकता हुआ, दीर्घ और गरम-गरम निःश्वास छोड़ता हुआ, दाढी के बालों को नोचता हुआ, गर्दन के पीछे के भाग को
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