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*२५ तीर्थ कर काल -- भगवान् के रोग का उपशमन
१ तरणं से लीहे अणगारे रेवईए गाहावरणीए गिहाओ पडिणिक्खमा, पडिणिक्खमित्ता मेंढियगामं णयरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छर, णिग्गच्छित्ता जहा गोयमलामी जावं भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स पाणिसि तं सव्वं संमं णिस्सिरह । तपणं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिप जाव अणज्झोचवण्णे बिलमिव पण्णगभूषणं अप्पाणेणं तमाहारं लरीरको गंसि पक्खिव । तपणं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस समाणस्स से विपुले रोगायके खिप्पामेव उवसमं पत्ते, हट्ठ े जाए आरोग्गे, बलियसरीरे तुट्ठा समणा तुट्ठाओ समणीओ, तुठ्ठा सावया, तुट्ठाओ साथियाओ, तुट्ठा देषा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमणुयासुरे लोए तुट्ठ' 'हट्ठ े जाए समणे भगवं महावीरे' हट्ठ०२ ।
भग० श१५/१६१।१६३ | पृ०६६६/६७
तत्पश्चात् वे सिंह अनगार रेवती गाथापत्नी के घर से निकलकर मैदिकग्राम नगर के मध्य होते हुए भगनान् के पास पहुँचे और गौतम स्वामी के समान यावत् आहार पानी दिखाया। फिर वह सब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के हाथ में भली प्रकार रख दिया । इसके बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मृच्छ ( आसक्ति) रहित यावत् तृष्णा रहित बिल में सर्प प्रवेश के समान उस आहार को शरीर रूप कोठे में डाल दिया । उस आहार को खाने के बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी का वह महापीड़ा कारी रोग शीघ्र ही शांत हो गया। वे हृष्ट, रोग रहित और बलवान शरीर वाले हो गये। इससे सभी श्रमण, तुष्ट (प्रसन्न हुए, श्रमणियाँ तुष्ट हुई, भावक तुष्ट हुए, भाविकाएँ तुष्ट हुई, देव तुष्ट हुए, देवियाँ तुष्ट हुई और देव, मनुष्य, असुरों सहित समग्र विश्व संतुष्ट हुआ • २५ भगवान् महावीर और सिंह अणगार
तपणं से सीहे अगगारे रेवईए गाहावइणीए गिहाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता मेढियगामं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छन्ता जहा गोयमसामी जाव भत्तपाणं पडिदसेइ २ त्ता लमणस्स भगवओ महावीरस्स पार्णिसि तं सम्बं सम्मं निस्सिरइ, तप णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिए जाव अणज्झोचवन्ने बिलमिव पन्नगभूषणं अप्पाणेणं तमाहारं सरीरकोट्ठगंसि पक्खिवर, तर णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस समाणस्स से घिउले रोगा के खियामेव उवसमं पत्ते हट्टे जाए आरोग्गे बजियसरीरे तुट्ठा समणा तुट्ठाओ समणीओ तुट्ठा साबया तुट्ठाओ सावियाओ तुट्ठा देवा तुठ्ठाभो देवीओ सदेवमणुयासुरे लोए तुट्ठे हट्ठे जाए समणे भगवं महावीरे हट्ठ ० २ |
-- मग० शं १५ / सू० १६२ / १६३
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