Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 493
________________ ( ४१० ) जिस प्रकार हाथी का शाबक निकटवर्ती पल्लव और तृण को छोड़कर ऊपर लगी हुई मध की इच्छा करता हुआ कंकर-पत्थरों से पूर्ण शिला तल पर गिरकर मरण को प्राप्त होता है, उसी प्रकार तुम निष्फल अपना मरण मत करो। तपस्या में क्यों लगते हो। इन कन्याओं से प्रेम करो। इस पर वर ने कहा-तु बुद्धि से शून्य है। भोग से जीव की तृप्ति नहीं होती। इन्द्रिय सुखों से उसकी तृष्णा नही बुझती। जंबूस्वामी की इस बात पर उस घोर चोर ने कहा-किसी एक शबर ने अपने बाण से एक हाथी को बेधा। उस बाणधारी दुर्धर-दुष्ट भिल्ल को वृक्ष वासी सर्प ने डस लिया। ५ जंबूस्वामी और विद्युच्चोर चोर के बीच युक्तियों और दृष्टांतों द्वारा पादविबाद इस पर उसने सांप को भी मार डाला। इस प्रकार वह हाथी मी मरा, धनुर्धारी शबर भी मरा और सर्प भी। उसी समय एक शृगाल मांसाहार की इच्छा से वहाँ आया। उस लोभी ने उस धनुष की प्रत्यंचा रूप स्नायु को खाना प्रारम्भ किया और वह अपने ही शरीर के रक्त से प्रसन्न होने लगा। धनुष के छोरों से बंधन टूट जाने के कारण शृगाल के दाँत मुड़ गये और तालु छिद गया । इसी प्रकार अपनी अति तृष्णा के कारण बेचारा शृगाल भी मारा गया। इसी प्रकार उसकी दशा होती है जो परलोक के पीछे दौड़ता है। अतएव मरो मत । भोग विलास के सुख का उपभोग करो। __ इस पर युवक ने कहा-हे चोर ! सुन, एक पथिक ने मार्ग में नाना रत्नों को देखा । उनको सलभ जान वह अपने नेत्रों को ढांककर इसलिये आगे चला गया कि इन्हें कोई दूसरा देख न पाये और मैं लौटते हुए इन्हें लेता जाऊँगा। किन्तु लौटने पर उसे वे रत्व नहीं मिले। इसी प्रकार जिनेन्द्र के वचन रूपी रत्न जिस जीव को नहीं भाते वह संसार में भ्रमण करता हुआ नाना प्रकार की विपत्तियां पाता है। वह क्रोध, लोम और मोह से मृढ बनकर आठों प्रकार के कर्म बंधन में पड़ता है। तब चोर कहता है-एक शृगाल मांस का टुकड़ा लिये हुए नदी पार जा रहा था। उसने देखा कि उस वेगवती नदी के पानी में एक मत्स्य अपने शरीर को ऊँचा कर उछल रहा है। उसकी तृष्णादश शृगाल ने अपने मुँह से मांस खण्ड को छोड़कर मत्स्य को पकड़ने का प्रयत्न किया। मत्स्य मुंह में न आया। किन्तु उसके मुख से छूटे हुए मांस खण्ड को एक गृद्ध झपट कर ले उड़ा। शृगाल स्वयं जल के प्रवाह में बहकर मर गया और मत्स्य जल में जीवित बच गया। इस पर वर ने चोर की पुनः भर्त्सना की और कहा-एक वणिक मार्ग में सख से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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