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( ४११) सो गया और बहीं उसके रत्नों की पिटारी को कोई चुरा ले गया। उसी वन में तुम्हारे समान अज्ञानी प्राणी हिंसको ने कुशील बना दिया और वह आपत्ति में पड़कर घोर दुःखों से पीड़ित हुआ। यही दशा होती है उस जीव की जो जिन वचन रूपी रत्नों से रहित होकर नरक में पहुँचता है। ५ जंम्बूस्वामी और विद्युञ्चर चोर के बीच युक्तियों और दृष्टांतों द्वारा वाद-विवाद
तेणघि सो तं मारिउपिसहरु । मुउकरि मुउ सरुल्तु धणुद्धरु ॥ तेत्थु समीहिवि मासाहारउ । तहि अवसरि आयउ कोहारउ । लुद्धउ णिय - तणु लोहे रंजइ । चाव सिंथणाऊ किर भुंजइ ॥ तुट्ठ - णिबंधणि मुहरुह मोडिइ । तालु विहिण्णु सरासण - कोडिइ ।। मुउ जंबुउ अइतिहर भग्गउ । जिह तिह सो परलोयहु भग्गाउ ॥ म मरुम मरुरइ-सुहु अणुहुंजहि । भणइ तरुणु तक्कर पडिवजहि ॥ सुलहस् पेच्छिषि विविहाँ रयण। गड पंथिउ ढंकिवि णिय-णयण ॥ जिणवर घयणु जीवणड भावइ । संसरंतु विधिहावा पावइ ।। कोहें लोहें मोहें मुज्झाइ । अट्ठ पयारे कम्में वाइ॥ कहा थेणु एक्कण सियालें । मास खंडु छडिवि तिहालें । तणुघल्जिय उप्परि परिहच्छहु । तीरिणि - सलिलुच्छलिया मच्छहु॥ आमिसु गहियउ पक्खिणि-गाहें । सो कढिषि णिउ सलिल-पवाहें।
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