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( १६३ ) वैश्यायन ने कहा-प्रभु ! मैंने पहचान लिया। आपके प्रताप से यह अधम बच निकला, अन्यथा यह आज भस्म हो ही जाने वाला था ।
चमत्कृत होकर 'गौशालक ने तेजोलेश्या कैसे प्राप्त की जा सकती है, यह सारा भेद प्रभु से पूछा।
प्रभु ने कहा-छह महिने तक बेले-बेले का तप कर के सूर्य की आतापना ले तथा पारणे के दिन ( व्रत खोलने का दिन) एक मुट्ठी उड़दों के बाकुलोंका भोजन करे तो तेजोलेश्या प्राप्त की जा सकती है।
गोशालक दुस्साहसी था ही, लग गया तेजो लेश्या की साधना में । छह महिने की साधना करके तेजोलेश्या प्राप्त कर ली।
गोशालक छह वर्ष तक भगवान महावीर के साथ रहा, फिर उन से पृथक् हो गया। उधर भगवान् ‘पार्श्वनाथ के छह साधु उस में आ मिले। उनके संसर्ग से वह अष्टांग निमित्त का विशेषज्ञ हो गया। लोगों को हानि-लाभ, सुख-दुःख आदि की भविष्यवाणियाँ करने लगा। लोगों में उसका अच्छा प्रभाव बढ गया। अब वह अपने आप को तीर्थ कर बताने लगा। भगवान महावीर को असर्वश, अल्पज्ञ बताकर अपने आपको सर्वज्ञ की भाँति पूजवाने लगा।
एक बार सावत्थी नगरी में भगवान महावीर के पास समवशरण में आया। वहाँ अलंजलूल बातें करते देखकर सुनक्षत्र और सर्वानुभूति ने उसे टोका। गोशालक ने कुपित होकर उन पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया और दोनों संतों को भस्म कर दिया। प्रभु को भी तेजोलेश्या का प्रयोग करके भस्म करना चाहा, पर अनंतबली प्रभु के शरीर में वह प्रविष्ट न हो सकी। लौटकर सारी तेजोलेश्या गोशालक के ही शरीर में प्रविष्ट हो गयी। उनका सारा शरीर जलने लगा। अंटसर बोलता हुआ प्रभु से बोला--आज से सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। प्रभु ने कहा-मैं तो अभी १६ वर्ष तक पृथ्वी पर विचरूँगा, हाँ, तेरा आयुष्य अवश्य सात दिन का है।
तेजोलेश्या के योग से गोशालक के शरीर में भयंकर गर्मी बढ़ गई। अंतिम समय में जब मौत देखने लगी तब अपने श्रावकों के सामने अपनी आत्म निंदा करते हुए कहामैं असत्यभाषी हूँ, दोनों संतों का संहारक हूँ, धर्मगुरु के साथ मिथ्या प्रवृत्ति करने वाला हूँ। मेरे मरने के बाद मेरे पैर में रस्सी बाँधकर 'सावत्थी' नगरी में घसीटना। मेरे सारे कुकृत्यों को सबके सामने प्रकट कर देना। यों कहकर मृत्यु को प्राप्त करके बारहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। पंतिम समय में की गई आत्मालोचना का सुफल हाथोंहाथ पा लिया।
पीछे से भावकों ने मकान के भीतर ही सावत्थी का नक्शा बनाकर गोशालक के को अनुसार सारी विधि आचरित की। किंत प्रकट रूप में सब ही धूमधाम से दाह क्रिया का कार्य सम्पन्न किया।
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