Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 475
________________ ( ३६२ ) भगवान के प्रथम मासोपवास का पारणा विजय सेठ के यहाँ किया। सुपात्र दान के कारण विजय सेठ के यहाँ विपुल रत्नों की वर्षा हुई। सभी ने विजय सेठ के भाग्य की सराहना की। चारों ओर विजय सेठ की महिमा फैल गयी । गोशालक ने जब यह सारा चामत्कारिक वर्णन सुना, तब मन में सोचा, मैं भी भगवान महावीर का शिष्य बन जाऊं तो निहाल हो जाऊँगा। इस प्रकार विचार कर 'महावीर' के पास आया और शिष्य बनने की प्रार्थना की। पर महावीर प्रभु मौन रहे। यों दूसरे महिने के पारणे दिन, तीसरे महिने के पारणे के दिन भी शिष्य बनने की गोशालक ने प्रार्थना की, परन्तु प्रभु मौन रहे। चौथी बार स्वयं लंचित होकर साधु के वेश में शिष्य बनने की प्रार्थना की। तब प्रभु ने उसे स्वीकार कर लिया। पर उसका बर्ताव सदा ही उच्छखलता पूर्वक ही रहा। प्रभु की जहाँ-जहाँ महिमा होती वह उसे सुनकर जल-भुनकर खाक हो जाता। फिर भी भगवान महावीर से अनुभाव प्राप्त करने लिए साथ-साथ रहता था। एक बार 'गोशालक भगवान महावीर के साथ 'कूर्मग्राम की ओर जा रहा था। मार्ग में एक खेत में तिल का पौधा था, जिसके सात फूल आये हुए थे। 'गोशालक ने प्रभु से पूछा-प्रभु । ये सात फूलों के जीव कहाँ पैदा होंगे। भगवान महावीर ने कहा-ये सात फूलों के जीव इसी तिल के पौधे में एक फली में पैदा होंगे। ___ महावीर आगे चले गये तब 'गौशालक ने प्रभु के कथन को असत्य करने के लिए उस पौधे को उखाड़ कर एक ओर फेंक दिया। संयोग की बात थी, वर्षा का मौसम था। उस पौधे को जहाँ से फेंका था, मिट्टी और जल का योग पाकर वह वहीं पल्लावित हो गया। कुछ समय के बाद जब प्रभु उधर आये तब गोशालक ने उसकी फली को तोड़कर देखा तो उसमें सात तिल थे। सात तिलों को देखकर 'गोशालक मौन हो गया। कूर्मग्राम के बाहर एक वैश्यायन नाम का बाल तपस्वी तपस्या में रत था । वह वेले-बेले की (दो दिन का उपवास) की तपस्या करता और सूर्य का आताप लिया करता। उसके सिर में जुएँ अधिक थीं। धूप के कारण जुएँ सिर से ज्यों-त्यों नीचे गिरती थीं, त्यों-त्यों वह उन्हें उठाकर वापिस सिर पर डाल लेता। गोशालक उसे देर तक देखता रहा और उसे यों करते देखकर उसकी भर्त्सना करते हुए कहा-अरे, ओ। जुषों के शथ्यातर यह क्या ढोंग रच रखा है ? वेश्यायनको क्रोध आ गया। कुपित होकर उसने गोशालक को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। तेजोलेश्या ज्यों ही गोशालक पर आक्रमण करने वाली थी कि भगवान महावीर ने शीतलेश्या फेंककर गोशालक की रक्षा की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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