Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ ( ३८४ ) भ्रमण भगवान महावीर स्वामी से आदेश पाकर सिंह अनगार प्रसन्न एवं संतुष्ट यावत् प्रफुल्लित हुए। और भगवान को वंदना-नमस्कार करके त्वरा, चपलता और उतावल से रहित, मुखवस्तिाका का प्रतिलेखन किया यावत् गौतम स्वामी के समान भगवान को वंदना नमस्कार करके शालकोष्ठक उद्यान से निकलकर, त्वरा और शीघ्रता रहित यावत् मेदिक ग्राम नगर के मध्यभाग में होकर रेवती गाथा पत्नी के घर पहुंचे और घर में प्रवेश किया। सिंह अनगार को आते हुए देखकर रेवती गाथा पत्नी प्रसन्न एवं संतुष्ट हुई। वह शीघ्र ही अपने आसन पर से उठी और सात, आठ चरण सिंह अनगार के सामने गई और तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार करके इस प्रकार बोली-“हे देवानुप्रिय ! आपके पधारने का प्रयोजन क्या है ?" तब सिंह अनगार ने कहा- रेवती! तुमने भमण भगवान् महावीर स्वामी के लिए जो कोइले के दो फल संस्कारित करके तैयार किये है उनसे मेरा प्रयोजन नहीं है, किन्तु मार्जार नामक वायु को शांत करने वाला, विजोपाक जो कलका बनाया हुआ है, वह मुझे दो, उसी से प्रयोजन है । २४ रेवती को आश्चर्य और भौषधिदान तपणं सा रेवई गाहाषणी सीह अणगारं एवं षयाली-'केसण सीहा। से णाणी चा तबस्सी वा, जेणं तव एस अहे मम ताप रहस्सकडे हल्वमक्खाए, जओ णं तुम जाणासि १ एवं जहा खंदए जाप जओ णं अहं जाणामि। तएणं सा रेवई गाहावइणी सीहस्स अणगारस्स अंतियं एयमंड सोचा णिसम्म हतुठ्ठा जेणेच भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेष उवागच्छित्ता पत्तगं मोएर, पत्तगं मोएत्ता जेणेव सीहे अणगारे उवागच्छद, तेणेष उषागरिछत्ता सीहस्स अणगारस्स पडिग्गहगंसि तं सव्वं समं णिस्सिरह १ तएणं तीए रेषाए गाहापाइणीए तेणं दधसुद्धणं जाच दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देखाउए णिबद्ध, जहा विजयस्स जाप जम्मजीवीयफले रेषईए गाहापरणीए रेषई० २। -भग• श १५॥७१५६४१६०।पृ० ६६५९६ रेवती गाथा पत्नी ने सिंह अनगार की बात सुनकर कहा- सिंह! ऐसे कौन ज्ञानी और तपस्वी है, जिन्होंने मेरी यह गुप्त बात जानी और तुम से कहा--जिससे कि तुम जानते हो। सिंह अनगार ने कहा-कि भगवान् के कहने से मैं जानता हूँ। सिंह अनगार की बात सुनकर रेवती गाथा पत्नी अत्यन्त दृष्ट एवं संतुष्ट हुई। उसने रसोई घर में आकर पात्र को खोला और सिंह अनगार के निकट आकर वह सारा पाक उनके पात्र में डाल दिया। रेवती गृह पत्नी के द्रव्य की शुद्धि युक्त प्रशस्त भावों से दिये हुए दान से सिंह अनगार को प्रतिलाभित करने से रेवती गाथा पत्नी ने देव का आयु बांधा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532