Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 3
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 458
________________ ( ३७५ ) होता है। उसकी ऐसी ही दशा होती है। अरे ! धर्माचार्य पर प्रक्षिप्त तेजो लेश्या कहाँ गयी। बहुत समय तक जेसा-वेसा बोलने वाला और दो मुनियों की हत्या करने वालाहोने पर प्रभु ने तुम्हारे पर अनुकंपा की, परन्तु अब तू स्वयं ही मृत्यु को प्राप्त होगा। यदि पूर्व में भगवान शीत तेजो लेश्या से तुम्हारी रक्षा नहीं करते तो तुम वेश्यायन से छोड़ी गयी तेजो लेश्या से मर जाता-याद कर। उनके वचनों को सुनकर गढे में पड़े हुए सिंह की तरह असमर्थ बना हुआ गोशालक उसे वह कुछ भी नहीं कर सकताक्रोध से उछाल मारने लगा। .१५ अपनी तेजोलेश्या से प्रतिहत गोशालक को छोड़कर उसके कुछ साधु भगवान के पास आये तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहिं णिग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाएपडिचोइजमाणे जाप णिप्पडपसिणवागरणे कीरमाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे णो संचाएर समणाणं णिग्गंथाणं सरीरगस्स किचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाए. तए, छविच्छेयं षा करेत्तए। तएणं ते आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं समणेहि णिग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडियोएजमाणं धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारिजमाणं, धम्मिएणं पडोयारेण य पडोयारेजमाणं अडेहि य हेऊहि य जाव करेमाणं, आसुरुत्तं जाव मिसिमिसेमाणं समणाणं णिग्गंथाणं सरीरगस्स किचि आवाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा अकरेमाणं पासंति, पासित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ आयाए अवकमंति, आयाए अपकमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, तेणेष उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति आ०२करेत्ता वंदर णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उवसंपजित्ता णं विहरति, अत्थेगइया आजीविया थेरा गोसालं चेव मंखलिपुत्तं उपसंपजित्ता णं विहरति। -भग० श १५/प्र ११८।११६।०६८४१५ गोशालक को छोड़कर भगवान के आश्रय में श्रमण निर्ग्रन्थों द्वारा प्रतिचोदना एवं अर्थ हेत, व्याकरण एवं प्रश्नों से यावत् निरुत्तर किया गया, तब गोशालक अत्यन्त कुपित हुआ। यावत् मिममिमाहट करता हुआ क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित हुआ, परन्तु श्रमण-निर्ग्रन्थों के शरीर को कुछ भी पीड़ा, उपद्रव तथा अवयव छेद करने में समर्थ नहीं हुआ। जब आजीविक स्थविरोंने यह देखा कि भ्रमण निग्रन्थों से धर्म सम्बन्धी प्रतिचोदना, प्रति सारणा और प्रत्युपचार द्वारा तथा अर्थ, हेत, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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