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जलाता हुआ, पुत- प्रदेश को प्रस्फोटित करता हुआ, हाथों को हिलाता हुआ और दोनों पैरों को भूमि पर पटकता हुआ - हा हा! अरे । मैं मारा गया “ऐसा विचार कर भ्रमण भगवान महावीर के समीप से और कोष्ठक उद्यान से निकल कर भावस्ती नगरी में हालाहला कुंमारिन की दूकान में आया ।
इसके बाद हाथ में व्याम्नफल (आम की गुठली ) लिया और मद्यपान करता हुआ बारम्बार गाता हुआ, बारम्बार नाचता हुआ, बारम्बार हालाहला कुंभारिन को अंजलि करता हुआ और मिट्टी के बर्तन में रहे हुए मिट्टी मिश्रित शीतल पानी से अपने शरीर को ffer करता हुआ विचरने लगा -
* १७ गोशालक की तेजशक्ति और दाम्भिकचेष्टा
'१ 'अज्जो' ति समणे भगवं महाबीरे समणे णिग्गंथे आमंतित्ता एवं बयासी – 'जावइए णं अजो ! गोलालेणं मंखलिपुतेणं ममं वहरए सरीरगंसि तेये जिलट्ठ, से णं अनाहि पज्जत्ते सोलसण्हं जणवयाणं, तं जहा - १ अंगाणं २ बंगाणं ३ मगहाणं ४ मलयाणं ५ मालवगाणं ६ अच्छाणं ७ षच्छाणं ८ कोच्खाणं ६ पाढाणं १० जाढाणं ११ वज्रणं १२ मोक्षीणं १३ कासीणं १४ कोसला १५ अवाहाणं १६ संभूतराणं घायाए, बहाए, उच्छादणयाए, मालीकरणयाए ।
-भग० श १५ प्र
"है आयो !” इस प्रकार संबोधन कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रमण निर्मन्थों को बुलाकर कहा - हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरा वध करने के लिए अपने शरीर में से जो तेजो लेश्या निकाली थी, वह निम्नलिखित सोलह देशों का घात करने में, बध करने में, उच्छेदन करने में और भस्म करने में समर्थ थी । यथा - १ अंग, २ बंग, ३ मगध, ४ मलय, ५ मालव, ६ अच्छ, ७ वत्स, ८ कौत्स, ६ पाट, १० लाट, ११ बज्र, १२ मौलि, १३ काशी, १४ कौशल, १५ अबाध और १६ संमुक्त तर ।
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'२ अथ स्वामी मुनीष चे तेजो गोशालकेन यत् । अस्मद्रधाय प्रक्षिप्तं तस्येयं शक्तिसर्जिता ॥ ४३० ॥ वत्साच्छकुत्लमगध वंगमाजव कोशलान् ।
पाडलारषज्रिमाजिमलयाबादुकांगकान् ॥ ४३१ ॥ काशीन योत्तरान् देशान् निदुग्धुं बोडशेश्वरा । तेजोलेश्या गोशालस्य तपसोध्रेण साधितां ॥ ४३२ ॥ ते बिलिष्मियिरे सर्वे मुनयो गौतमादयः । सम्तः शतौ परस्यापि मात्सर्य नहिविभूति ॥ ४३३ ॥
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- त्रिशलाका० पर्व १० सर्ग ८
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