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( १८० ) रोग उत्पन्न हुथा और वे अतिसार से पीड़ित हुए। यह जन-प्रवाद फैल गया कि भगवान महावीर गोशालक की तेजोलेश्या से आहत हुए है और वह महिनों के अन्दर काल कर जायेंगे।
भगवान महावीर के शिष्य मुनि सिंह ने अपनी तपस्या-आतापना सम्पन्न कर सोचा-मेरे धर्माचार्य भगवान महावीर पित्तज्वर से पीड़ित है। अन्यतीथिंक यह कहेंगे कि भगवान गोशालक की तेजो लेश्या से आहत होकर मर रहे है। इस चिंता से अत्यन्त दुखित होकर मुनि सिंह मालुका कच्छ वन में गए और सुबक-सुबक कर रोने लगे। भगवान ने यह जाना और अपने शिष्यों को भेजकर उसे बुलाकर कहा-सिंह! तुने जो सोचा यह यथार्थ नहीं है। मैं आज से कुछ कम छोलह वर्ष तक केवली पर्याय में रहूँगा। जा, तु नगर में जा। वहाँ रेवती नामक भाविका रहती है। उसने मेरे लिए दो कुमोड फल पकाएँ है। वह मतलाना । उसके घर विजोरापाक भी बना है। यह वायुनाशक है। उसे ले पाना । वही मेरे लिए हितकर है।
सिंह या। रेवती ने अपने भाग्य की प्रशंसा करती हुई, मुनि सिंह ने जो मोगा, वही दे दिया। सिंह स्थान पर आया महावीर ने बीजोरापाक वाया। रोग उपशांत हो गया।
'२० भगवान् का रोग और लोकापवाद __ १ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकया सापरथीओ गयरीमो कोहयाओ चेइयाओ पडिणिक्नमा, पडिणिक्वमित्ता बहिया जणषयविहारंधिहए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे णाम जयरे होत्था, षण्णओ। तस्सणं मेंढियगामस्सणयरल्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसियाए एत्थणं लान कोहए णामंचेहए होत्था, षण्णओजाव पुढषिसिखापट्टभो। तस्स णं सान कोहगस्स गं चेइयस्स अदूरसामते एत्यर्ण महेगे मालुया कच्छए याषि होत्या, किण्हे किण्होभासे जापणिउरंगभूए, पत्तिए, पुष्फिए फलिय, हरियगरेरिजमाणे, सिरीए अईव अईव उपसोभेमाणे चिट्ठा।
तत्थ णं मेंढियगामे णयहरे रेषईणाम गाहापाणी परिषसा, भड्डा जाप अपरिभृया।
तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ पुग्धाणुपुन्धि परमाणे जाप जेणेव मेंढियगामे जयरे जेणेष सालकोहए चेहए जाप परिसा परिगया।
भग• श१५
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