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। ३७२ ) स्वतेजोलेश्ययैव त्वं पुनः पित्तज्वरादितः। विपत्स्यसे सप्तदिनपर्यन्ते नात्र संशयः ॥ ४२१ ॥
--त्रिशलाका पर्व १०।सर्ग८ २ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते सएणं तेएणं अण्णाइडे । समाणे समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-'तुमं णं आउसो कासवा! मम तवेणं तेपणं अण्णाइडे समाणे अंतो छण्हँ मासाणं पित्तजरपरिगयसरीरे दाहषषकंतीए छउमत्थे चेष कालं करेस्ससि। तपणं समणे भगवं महावीरे गोसालं मखलिपुत्तं एवं पयासी-'णो खल्लु अहं गोसाला ! तव तवेणं तेएणं अण्णाइ समाणे अंतो छण्हं जाच कालं करिस्सामि, अहं णं अण्णाई सोलस पासाई जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि तुम णं गोसाला! अप्पणा चेष सएणं तेएणं अण्णाइडे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तजरपरिगयसरीरे जाव छउमत्थे चेष कालं करिस्ससि।'
-भग श १५/प्र ११३११४/पृ० ६८३
वह अपनी ही तेजो जेश्या से पराभव को प्राप्त हुआ। क्रद्ध गोशालक ने भ्रमण भगवान महावीर स्वामी को कहा-"आयुष्यमन् काश्यप ! मेरी तपोजन्य तेजो लेश्या द्वारा पराभव को प्राप्त होकर, तू पित्त ज्वर युक्त शरीर वाला होगा और छह मास के अंत में दाह की पीड़ा से छद्मस्थावस्था में ही मर जायेगा।" तब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने गोशालक ने इस प्रकार कहा-हे गोशालक । तेरी तपोजन्य तेजो लेश्या से पराभव को प्राप्त होकर मैं छह मास के अंत में यावत् काल नहीं करूंगा, परन्तु दूसरे सोलह वर्ष तक जिनपने गंध हस्ती के समान विचरूँगा । परन्तु हे गोशालक ! तु स्वयं अपनी ही तेजो लेश्या से पराभव को प्राप्त होकर सात रात्रि के अंत में पित्त ज्वर से पीड़ित होकर, छदमस्थावस्था में भी काल कर जायेगा। .१२ भगवान महावीर और गोशालक के संबंध में जनचर्चा
तएणं सावत्थीए णयरीए सिंघाडग जाप पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एषमाइक्खइ, आप एवं परूवेइ-'एवं खलु देवाणुप्पिया! सापत्थीए गयरीए बहिया कोट्ठए चेइए दुवे जिणा संलवंति, एगे षयइ-तुम पुन्धि कालं करिस्ससि, तत्थ णं के पुण सम्मावाई के पुण मिच्छावाई? तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से चयइ-'समणे भगवं महावीरे सम्मावाई, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छापाई।
-मग श १५॥प्र ११५/पृ. ६८३८४
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