________________
( ३५१ ) आद्रक जी गौशालक से कहते है.-बनिये आरम्भ और परिग्रह को नहीं छोड़ते किन्तु वे उनमें अत्यन्त बद्ध रहते है तथा वे आत्मा को दंड देने वाले है। उनका वह उदय, जिसे तू उदय बतला रहा है वह वस्तुतः उदय नहीं है किन्तु वह चतुर्गतिक संसार को प्राप्ठ कराने वाला और दुःख का कारण है एवं वह उदय कमी नहीं भी होता है। . सावध अनुष्ठान करने से बनिये का नो उदय होता है वह एकांत आत्यन्तिक नहीं है-ऐसा विद्वान लोग करते है। जो उदय एकान्त तथा आत्यन्तिक नहीं है उसमें कोई गुण नहीं है परन्तु भगवान जिस उदय को प्राप्त है वह आदि और अनन्त है। वे दूसरे को भी इसी उदय की प्राप्ति के लिए उपदेश करते हैं। भगवान त्राण करने वाले और सर्वज्ञ है।
भगवान प्राणियों की हिंसा से रहित है तथा वे समस्त प्राणियों पर कृपा करने वाले है। वे धर्म में सदा स्थित है और कर्म के विवेक के कारण है। ऐसे उस भगवान को तुम्हारे जैसे खात्मा को दण्ड देने वाले पुरुष ही बनिये के सदृश कहते है। यह कार्य तम्हारे अज्ञान के अनुरूप ही है। .८ पायपत्यीय अणगार .१ केशी कुमार श्रमण
तेणं काले तेणं समएणं पासापश्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूपसंपण्णे विनयसंपण्णे नाणसंपण्णे दसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे लजालाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी पच्चंसी।
जअंसी जियकोहे जिबमाणे जियमाए जियकोहे जियणिहे जितं दिए जियपरीसहे जीषियासमरणभयषिप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निन्छयप्पहाणे अजवप्पहाणे महवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विजप्पहाणे मंतप्पहाणे ॥
बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सञ्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे ओराले... [पृ० १४७ पं० १-] घोर घोर गुणे घोरतपस्सी घोरबंभचेरवासी उच्ढसरीरे संखित्तविपुलतेयलेस्से चउदसपुवी-चउणाणोषगए पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिखुडे पुधाणुपुन्धि चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेष सावत्यि नयरी जेणेष कोहए चेहए तेणेव उवागच्छाइ, सावत्थी-नयरीए बहिया कोहए बेइए अहापडिरूवं उग्गहंउग्गिणिहत्ता संजमेणं तपसा अप्पाणं भावमाणे बिहरह।
-राय. सू. १४७
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org