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( ३५२ ) उस समय वहाँ-सावत्थी नगरी में पार्श्वनाथ के केशी नामक कुमार श्रमण भी आये हुए थे। ये केशी कुमार श्रमण जातवान कुलीन, वलिष्ठ, विनयी, ज्ञानी, सम्यग् दर्शनी, चारित्रशील, लाजवान निरभिमानी, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी थे।
उन्होंने क्रोध-मान माया और लोभ परजीत की रखी थी। निद्रा, इन्द्रिय और परीषह पर काबू किये हुए थे। उनको जीवन की तृष्णा अथवा मरण, कामय न थां । इनके जीवन में तप, चरण, करण, निग्रह-सरलता, कोमलता, क्षमा, निर्लोभता-ये सब गुण मुख्यरूप से थे। तथा वे श्रमण, विद्यावान मांत्रिक ब्रह्मचारी और वेद तथा नयके ज्ञाता थे। उनको सत्य, शौच आदि सदाचारों के नियम प्रिय थे। तथा वे चतुर्दशपूर्वी और चार ज्ञान वाले थे। ऐसे वे केशी कुमार श्रमण स्वयं के पांच सौ भिक्षु शिष्यों के साथ अनुकम से ग्रामानुग्राम विरहण करते हुए रुखे-सुखे विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी के बाहर ईशान कोण में स्थित कोष्ठक चैत्य में आकर ठहरे। और वहाँ योग्य अभियह धारण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए रहने लगे। पाश्वपत्यीय अणगार केशीकुमार श्रमण
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासायश्चिज्जे केशी नाम कुमारसमणे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूपसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे लजालाघवसंपण्णे- ओयंसी तेयसी वच्चंसी। जलंसी
राय. सू. १४७ उस काल उस समय में श्रावस्ती नगरी में पावापत्य केशी नामक कुमार श्रमण जाति सम्पन्न, कुल सम्पन्न, बल सम्पन्न, रूप सम्पन्न, विनय सम्पन्न, शान संपन्न, दर्शन संपन्न, चारित्र संपन्न, लज्या संपन्न, लाघव संपन्न, निरभिमानी, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी थे।
नोट-दीर्घ निकाय में इस स्थान में कुमार काश्यप (पाली-कुमार कस्सप) का नाम है ।
काश्यप का भिक्षु-समुदाय पांच सौ की संख्या में बताया है। कुमार काश्यप को भ्रमण गौतम के (गौतम बुद्ध के ) श्रावक रूप में वर्णन किया है । ( बौद्ध शासन में त्यागी हो वह श्रावक और गृहस्थ हो उसे उपासक कहा है । ) यह कुमार काश्यप सीधा ही सेयविया नगरी में आता है । तब केशी कुमार श्रमण के श्रावस्ती में आने के पश्चात् सेयविया की ओर जाता है जो आजन्म ब्रह्मचारी हो वा कुमार श्रमण कहा जाता है। मूलतो 'कुमार श्रमण' शब्द यौगिक है बाद में वह ब्राह्मण मुनि आदि शब्द की तरह रुढ हुआ लगता है। पाणिनीय के मूल अष्टाध्याय [२-१-७० ] में भी इस शब्द का उल्लेख है अर्थात् यह शब्द प्राचीन है ।
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