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ऐसी महा आशावना करता है। इस कारण वह जब कभी यहाँ से उठेगा- अबश्य ही वध करने के योग्य है उसी समय भगवान् को छींक आई। इतने में मह कुष्ठी बोला कि - " आप मृत्यु को प्राप्त हो ।
इसके वाद श्रेणिक राजा को छींक आई तब वह बोला कि - दीर्घकाल तक जीवित रहो ।
इसके थोड़ी देर बाद अभयकुमार को छींक आईं तब वह बोला कि जीवित रहो अथवा मरण को प्राप्त हो ।
इसके बाद कालसौरिक को छींक आई-तब वह बोला कि जीवित भी मत रहो और मरण को प्राप्त मत हो ।
अस्तु भगवान के लिए - मृत्यु को प्राप्त हो ऐसा कहा - इस प्रकार का वचन सुनकर क्रोध से प्राप्त हुआ श्रेणिक राजा स्वयं के सुभटों को आशा की - जब वह कुष्ठी यहाँ से उठे तब उसे पकड़ लेना ।
देशना समाप्त होने के पश्चात् वह कुष्ठी भगवान् को नमस्कार कर उठा । उस समय किरात लोग जैसे सुकर को घेर लेते हैं वैसे ही श्रेणिक के सुभटों ने उसे घेर लिया । परन्तु उनके देखते-देखते वह क्षणभर में दिव्य रूप धारण कर सूर्य के बिम्ब को निस्तेज करता हुआ आकाश में उड़ गया ।
अस्तु सुभटों ने यह सब घटित घटना श्रेणिक राजा को कही तब श्रेणिक राजा ने विस्मत होकर भगवान् को विज्ञप्ति की कि - "हे भगवान् ! वह कुष्ठी कौन था ।
प्रत्युत्तर में भगवान् बोले- वह देव था ।
राजा ने फिर सर्वज्ञ को पूछा कि तब वह कुष्ठी किस लिए हुआ था ।
भगवान ने कहा- उसकी चर्चा इस प्रकार है ।
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कौशाम्बी नाम पुस्तस्यां शतानीकोऽभषन्नृपः ॥ ६९ ॥ तस्यां नगर्या मेकोऽभून्नामतः सेडुको द्विजः । सीमा सट्टा दरिद्राणां मूर्खाणामवधिः परः ॥ ७० ॥ गर्भिण्याऽभाणि सोऽन्ये घुर्ब्राह्मण्या सूतिकर्मणे । भट्टानय धृतं मह्यं सह्य न ह्यन्यथा व्यथा ।। ७१ ।। सोऽप्यूचे तां प्रिये ! नास्ति मम कुत्रापि कौशलम | येन किंचिल्लभे कापि कक्षामाह्या यदीश्वराः ॥ ७२ ॥ उवाच सा च तं भट्ट गच्छ सेवस्व पार्थिवम् । पृथिव्यां पार्थिवादन्यो न कश्चित कल्पपादपः ॥ ७३ ॥
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