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( ३६२ ) गति से शीघ्र ही कोष्ठक उद्यान में, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समीप आये और तीन बार प्रदक्षिणा एवं वंदन नमस्कार कर इस प्रकार बोले-'हे भगवन् ! आज छहक्षमण के पारणेके लिए आपकी आज्ञा लेकर श्रावस्ती नगरी में ऊँच, नीच और मध्यम कूलों में गोचरी के लिए जाते हुए जब मैं हालाहला कुंभारिन की दुकान के अदूर सामन्त होकर ना रहा था, तब मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझे देखा और मुझे बुला कर कहा--"हे आनंद ! यहाँ आ और मेरे एक दृष्टांत को सुन ।" तब मैं उसके पास आ गया। गोशालक ने मुझे इस प्रकार कहा-हे आनंद ! आज से बहुत काल पहले कुछ वणिक् इत्यादि पूर्ववत यावत नागदेव ने उसे अपने शरीर में रख दिया। इसलिए हे आनंद । तुजा और अपने धर्माचार्य, धर्मोपदेशक से यावत कह ।
'४ भ्रमण एवं श्रमण भगवंत का तपतेज
तं पभूणं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्नं कूडाहचं भासरासिं करेत्तए, विसरणं भंते! गोसालस्स मखलिपुत्तस्स जाप करेत्तए, समत्थे णं भंते ! गोसाले जाव करेत्तए ?
पभूणं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं जाप करेत्तए। षिसएणं आणंदा! गोसाल० जाव करेत्तए। समत्थे णं आणंदा ! गोसाले जाप करेत्तप, णो चेष णं अरहते भगवंते, परियावणिय पुण करेजा। जापइए णं आणंदा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवत्तेए, एत्तो अणतगुणपिसिट्ठयराए चेव तपतेए अणगाराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो । जापइएणं आणंदा! अणगाराणं भगवंताणं तवतेए एत्तो अणंतगुणविसिहयराए वेष तवतेए थेराणं भगवंताणं खंतिखमा पुण थेरा भगवंतो। जापइए णं आणंदा थेराणं भगवंताणं तवतेए एत्तो अणंतगुणविसिट्टयतराए चेष तपतेए अरहंताणं भगवंताणं खंतिखमा पुण अरहंता भगवंतो! तं पभूणं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं जाव करेत्तए, विसरणं आणंदा, जाप करेत्तए, समत्थेणं आणंदा ! जाव करेत्तए, णो वेव णं अरहते भगवंते, परियापणियं पुणं करेजा।
-भग० श १५/प्र.६८
आनंद निर्यन्य ने भगवान से प्रश्न किया-हे भगवन् ! मखलिपुत्र गोशालक अपने तपतेज से एक ही प्रहार में कूटाघात के समान जलाकर भष्म करने में प्रभु (समर्थ) है। हे भगवन् ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह यावत् विषय मात्र है या वह ऐसा करने में समर्थ है।
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