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( ३५५ ) ९ भगवान महावीर के समय के व्यक्ति विशेषछपनये वर्ष की घटना-राजगृह मेंएक कुष्ट व्यक्ति का-देव का आगमन
तदा कुण्ठगलत्कायः कश्चिदेत्य प्रणम्य च। निषसादो प तीर्थेशमलर्क इष कुटिमे ॥ ५९ ॥ ततो भगषतः पादौ निजपूयरसेन सः। निःशंकरचन्दनेनेष चर्चयामास भूयसा ॥ ६० ॥ तद्वीक्ष्य श्रेणिकः कुद्धो वध्यौ वध्योइमुत्थितः । पापीयान् यजगद् भर्तर्येच माशातनापरः ।। ६१ ॥ अत्रान्तरे जिनेन्द्रण क्षुते प्रोषाच कुष्ठिकः।। नियस्वेत्यथ जीवेति श्रेणिकेन क्षुते सति ॥ ६२॥ क्षुतेऽभयकुमारेण जीव वा त्वं नियस्व था। कालसौकरिकेणापि क्षते मा जीप मा मृथाः॥ ६३ ॥ जिनं प्रति नियस्वेति वचसा रुषितो नृपः । इतः स्थानादुत्थितोऽसौ ग्राह्य इत्यादिशद् भटान् ॥ ६४ ॥ देशनान्ते महावीरं नत्वा कुष्ठी समुत्थितः । रुरुधे श्रेणिकभटैः किरातैरिव सूकरः ॥ ६५॥ सतेषां पश्यतामेष दिव्यरूपधरः श्रणात् । उत्पपाताम्बरे कुर्वन्नबिम्वविडम्बनाम् ॥ ६ ॥ पत्तिभिः कथिते राहा स कः कुष्ठीति विस्मयात्। श्षो विक्षप्तः प्रभुस्तस्मै देवः सइति शस्तवान् ॥ ६७ ।। पुनर्षिापयामास सर्वज्ञपिति भूपतिः । देषः कथमभूदेष कुष्ठी चा केन हेतुना ॥ ६८ ॥ अयोचे भगषानेषमस्ति वित्सेषु विश्रुता ।
-त्रिशलाका पर्व १०सर्ग ६
जब भगवान महावीर राजगृही में धर्म देशना दी ! उस समय कुष्ठ रोग से जिसकी काया गल गई थी-ऐसा कोई पुरुष वहाँ आया और भगवान को प्रणाम कर हड काया श्वान की तरह भगवान के पास जमीन पर बेठा। बाद में चंदन की तरह स्वयं के परुसे उसने भगवान के चरण को बारंबार निशंक रूप से चर्चित करने के लिये बेठा। यह देख कर भेणिक राजा क्रोधित हुआ तथा विचार करने लगा। यह महापापी जगत् स्वामी की
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