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केशी स्वामी ने दूसरा प्रश्न किया - महानुभाव । ये वेश में विविधता क्यों ? जब एक ही लक्ष्य को लेकर दोनों चल रहे हैं ? तब पार्श्व प्रभु ने कीमती और रंगीन वस्त्रों के प्रयोग की साधुओं को छूट दी । वहाँ भगवान् महावीर ने केवल अल्प मूल्य वाले श्वेत वस्त्रों की ही आशादी, इसका क्या कारण है ।
गौतम ने समाधान देते हुए कहा - वक्रजड़, ऋजुप्राज्ञ तथा ऋजुजड़ साबओं मन में आसक्ति के भाव पैदा न हो, संयम की यात्रा का सकुशल निर्वाह कर सके। लोगों में प्रतीती हो तथा कोई भी अकार्य करते हुए देश को देखकर मन में झिझक हो कि मैं साधु हूँ - यह काम मेरे लिए अनाचीर्ण है, इसलिए वेषभूषा की उपयोगिता है । साधकों की मनोभूमिका को लक्ष्य करके ऐसा किया गया है ।
यो केशी स्वामी ने विविध विषयों पर १२ प्रश्न किये और गौतम स्वामी ने सबका समुचित समाधान किया । इस समाधन से सम्पूर्ण परिषद को संतोष हुआ । शिष्यों की जिज्ञासाएँ समाप्त हुईं। स्वयं केशी स्वामी अपनी शिष्य मंडली सहित पाँच महात्रत धर्म का स्वीकरण करके गौतम स्वामी के गण में सम्मिलित हो गये । अंत में केशी स्वामी केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में विराजमान हुए ।
.७३ भगवान् महावीर की सर्वज्ञावस्था और गोशालक
.१ जिन प्रलापी गोशालक का रोष
तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अण्णयाकयाचि इमे छ दिमाचरा अंतियं पाउ भवित्था, तंजहा - साणेतं चेव, सव्वंजाव अजिणे जिणसद्द पगासेमाणे विहरइ, तं णो खलु गोयमा ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे, जिणप्पलाची जाव जिणसह पगासेमाणे विहरइ, गोसालेण मंखलिपुत्ते अजिणे, जिणप्पलाबी जाव पगासेमाणे विहरइ । तपणं सा महतिमहालया महश्च परिला जहा सिवे जाव पडिगया ।
तप णं सावत्थीए णयरीए लिंखाउग० जाव बहुजणो अण्णमण्णस्स जाव परूवेह - 'जं णं देवाणुपिया । गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलाची जाव विहरइ, तं मिच्छा ।
समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ जाव परूवेह - 'एवं खलु तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखलीणामं मंखे पिया होत्या ।
तप णं तस्स मंखलिस्स एवं चेव तं सव्वं भाणियव्वं, जाव अजिणे जिणसह पगासे विहरह, तंणो खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे, जिणप्पलाची
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