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( २२० ) (ग) भोगपुर नगर में-सानतकुमारेन्द्र का
क्रमेण घिहरन् प्राप पुरं भोगपुराभिधम् ॥४६७॥
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चिरदर्शनसोत्कंठो द्रष्टुं च स्वामिनं तदा।। आगात् सनत्कुमारेन्द्रस्तत्राऽपश्यञ्च तं शठम् ॥४६९॥
-त्रिशलाका० पर्व १० सर्ग ४/श्लो ४६७, ४६६ जब भगवान महावीर सुसंमार नगर से विहारकर भोगपुर नगरी पधारे तब सनत्कुमारेन्द्र भगवान के दर्शनार्थ आया। .४ भगवान के छद्मस्थावस्था की घटना विशेष-पुर्णभद्र और मणिभद्र (क) मलय टीका-ततो सामी यंपं नयरिं गतो, तत्थ सोमदत्तमाहणस्स अग्गिहोत्तसालाए पसहि उवगतो, तत्थ चाउम्मासं खमइ, तत्थ दुवेजक्खा पुण्णभहमणिभदा रत्तिं पज्जुवासंति, चत्तारिमासे रत्ति रत्ति पूर्य करेति ताहे सोचिंतेइ किपि जाणइ एस तो देवा महेंति, ताहे चिन्नासणनिमित्त पुच्छइ-को ह्यात्मा ? भगवानाह-योऽहमित्यभिमन्यते, सकीदृशः १ सूक्ष्मोऽसौ, किंतत् सूक्ष्म १, सूक्ष्मोऽसौ यदिन्द्रियैर्ग्रहीतु न शक्यतेइति, तथा किंतं ते पदेसणय १ किं पच्चक्खाण ? भगवानाह–साइदत्ता ! दुविहं पदेसणगं-धम्मियं अधम्मियंबा, पदेसणगं नाम उपदेशः, पञ्चक्खाणे दुविहे-मूलपश्चक्खाणे उत्तरपग्धक्खाणे य, एपहिं परहिं तस्स उवगयं । अमुमेवार्थमाह
खंपावासांवासं जक्खिंदो साइदत्त पुच्छाय। वागरण दुह पएसण पच्चक्खाणे अदुविहेअ॥ आव• निगा ५२२
टीका-भगवान् बंपायां वर्षावासं कृतवान् , तत्र द्वौ यक्षेन्द्रौ भगवतो महिमां कृतवन्तौ, ततः स्वातिदत्तस्य ब्राह्मणस्य पृच्छा, भगवतो व्याकरण, द्विविधं प्रदेशनं द्विविधं च प्रत्याख्यानमिति ।
छमावस्था का बारहवां चतुर्मास भगवान महावीर ने चंपानगरी में किया। वहाँ दो यक्ष-पूर्णभद्र और मणिभद्र ने भगवान महावीर की पर्युपासना की। चारमास सेवा की। (ख) चंपा में बारहवें चतुर्मास के समय में
(क) पूर्णभद्रमाणिभद्रौ यक्षौ तत्र महद्धिको । रात्रौ रात्रौ समभ्येत्य पर्यपूजयतां प्रभुम् ॥६०७॥
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ४
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