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( ३०७ ) तेणेव उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेहंति गेहेत्ता तित्थमट्टियं गेहति गेण्हित्ता जेणेष गंगा-सिंधु रत्ता-रत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति सलिलोदगं गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेहंति मट्टियं गेण्हित्ता जेणेष चुल्लहिमवंतसिहरीवासहर पव्वया तेणेव उवागच्छंति तेणेष उवागच्छित्ता दगं गेहति सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सम्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हति गिण्हित्ता जेणेव पउमपुंडरीयदहे तेणेव उवागच्छंति उषागच्छित्ता दहोदगं गेहति गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव [पृ० २१ पं०१०] सयसहस्सपत्ताईताई गेण्हंति गेण्हित्ता जेणेव हेमवएरवयाइ वासाइ जेणेव रोहिय-रोहियंसा सुवण्णकूल-रुप्पकूलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छति, सलिलोदगं गेण्ह ति गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गिण्हति गिण्हित्ता जेणेव सहावतिवियडाव तिपरियागा वट्टवेयड्ढ पञ्षया तेणेव उवागच्छन्ति उवागच्छित्ता सव्वतूयरे तहेष [पृ०२४३ पं०६-] जेणेव महाहिमवंतरुप्पिवासहरपन्बया तेणेष उवागच्छन्ति तहेव जेणेव महापउममहापुंडरीयहहा तेणेव उवागच्छन्ति उवागछित्ता दहोदगं गिण्हन्ति तहेव जेणेष हरिवासरम्मगवासाई जेणेव हरिकंत-नारिकताओ महाणईओ तेणेव उवागच्छन्ति तहेव जेणेष गंधावइमालचन्तपरियाया पट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव तहेव जेणेव णिसढणीलवंतवासधरपन्चया तहेव जणेव तिगिच्छिकेसरिदहाओ तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता तहेव जेणेष महाविदेहे वासे जेणेष सीतासीतोदाओ महाणदीओ तेणेष तहेव
जेणेष।
-राय• सू० १३५ उक्त आज्ञा सुनते ही वह आभियोगिक देव वहां से ईशान कोण में जाकर एक, दो बार पैकिय समुद्घात किया और उसके द्वारा अभिषेक की सामग्री के लिए एक हजार आठ एक हजार आठ-ऐसे बहुत पदार्थ बनाकर लिया जैसे कि
सोने के, रूपे के, मणि के, सोनामणि के, रूपामणि के और सोना रूपामणि के कलश बनाये, भौमेय कलश-घड़ी निकाले, उसी प्रकार और उतनी ही संख्या में भृङ्गार, आरिसा, थाल, पात्रियो, छत्र, चामर, फूलकी और मोरपीछ आदि की चंगेरियो, तेल के हिंग लोक के और आंजन आदि के दवाओं और धूपधाणाओ-इन सर्व की एक हजार आठ-एक हजार आठ की संख्या में रचना की।
इन सर्व की स्वाभाविक और बनावटी सामग्री लेकर वे आभियोगिक देव तिर्यगलोक की ओर जाने के लिये वेगवाली गति से झपाटा बंध उपड़े ।
इस तरफ असंख्य योजन जाते-जाते वे क्षीर-समुद्र के पास आ पहुँचे। उसमें से
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