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( २६. ) उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र कोणिक राजा राज्य करते थे।
उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की पट्टरानी कोणिक राजा की लघमाता काली नाम की देवी सुकुमाल कर-चरण वाली यावत् सुरूपा थी। उस काली महारानी के कोमल कर चरण वाला और सुन्दर रूप वाला 'काल' नाम का कुमार था।
कूणिक के साथ काल कुमार अपनी सेना को लेकर रथमुसल संग्राम में उपस्थित हुए अर्थात संग्राम के निश्चित हो जाने के पश्चात् वह काल कुमार नियत समय पर तीन हजार हाथी-घोड़े, रथ आदि, एवं तीन करोड़ पैदल सेना को लेकर गरूडव्यूह में ग्यारवें वंश के भागी राजा कूणिक के साथ 'रथमुसल' संग्राम में उपस्थित हुआ ।
काली देवी के प्रश्न करने पर
__ काली देवी को श्रमण भगवान महावीर ने कहा-तेरा पुत्र काल कुमार तीन-तीन हजार हाथी-घोड़े, रथ और युद्ध की समरस्त सामग्री सहित रथमुसल संग्राम में कूणिक राजा के साथ गया था। वहाँ रथमुसल संग्राम में युद्ध करता हुआ वह अपनी सेना और सारी रण सामग्री के नष्ट हो जाने पर, बड़े २ वीरों के मारे जाने और घायल होने पर तथा ध्वजा-पताका आदि चिह्नों के धराशायी हो जाने से अकेला ही अपने पराक्रम से सभी दिशाओं को निस्तेज करता हुआ रथ पर बैठकर चेटक राजा के रथ के सामने महावेग से आया।
। तदनन्तर चेटक राजा कालकुमार को अपने सम्मुख आया हुआ देख कर तत्क्षण क्रुद्ध हो उठे, रुष्ट हुए और आन्तरिक कोपके कारण उनके होठ फड़-फड़ाने लगे। उन्होंने रौद्र रूप धारण किया एवं क्रोध की ज्वाला से जलने लगे। ललाट पर आवेश से तीन शल्य चढाते हुए धनुष को सजा किया और उस पर बाण चढ़ा कर युद्ध स्थल में खड़े हो गये और बाण को कान तक खींचा, अन्त में चेटक ने कूट, अर्थात बहुत बड़ा पत्थर का बनाया हुआ 'महाशस्त्र विशेष' जिसके एक बार के प्रहार से प्राण निकल जाय, उसी प्रकार बाण के प्रबल प्रहार से काल कुमार के प्राण ले लिये।
इसलिए हे काली ! तुम काल कुमार को जीवित नहीं देखेगी।
काली रानी के चले जाने के बाद गौतम-स्वामी भगवान से प्रश्न किया-है भदन्त ! काल कुमार तीन-तीन हजार हाथी, घोड़े, रथ और अपने सम्पूर्ण सेन्यवर्ग के साथ रथमुसल संग्राम में युद्ध करता हुआ चेटक राजा के वज्र स्वरूप एक ही बाण से मारा गया। वह मृत्यु के समय काल प्राप्त होकर कहाँ गया और कहाँ उत्पन्न हुआ।
प्रत्युत्तर में भगवान ने कहा-ई गौतम ! वह क्रूरकर्म करने वाला काल कुमार अपनी सेना सहित लड़ता हुआ यहाँ से मर कर पंकप्रभा नामक चौथे नरक के अन्दर हेमाम नाम के नरकावास में दस सागरोपम स्थिति वाला नैरयिक हुआ।
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