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। २६५) इस प्रकार दो इन्द्र संग्राम करते है-एक देवेन्द्र और दूसरा मनुजेन्द्र । अब कूणिक राजा एक हाथी से भी शत्रु पक्ष को पराजय करने में समर्थ है ।
उसके बाद वह कूणिक राजा महाशिला कंटक संग्राम को करता हुआ नवमलकि और नवलेच्छकि जैसे काशी और कोशल के अठारह गणराजा थे। उन्हें महान योद्धाओं ने हना, घायल किया और मारा। उनकी चिह्न युद्ध ध्वजा और पताकाओं को फाड़कर फेंक दिया।
और जिनके प्राण मुश्किल में है-ऐसे उन्हें (युद्ध में) चारों दिशाओं में भगा दिया ।
गौतम-हे भगवान ! क्या कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह महाशिला कंटक संग्राम है?
प्रत्युत्तर में भगवान ने कहा-हे गौतम ! जब महाशिला कंटक संग्राम हुआ था-जब उस संग्राम में जो घोड़े, हाथी, योद्धा और सारथि तृण, काष्ठ, पांदड़ा या कांकरे से हनन होते-तब ऐसा सब जानते थे कि मैं महाशिला हनित हुआ हूँ। इस कारण से हे गौतम ! उसे महाशिला संग्राम कहा जाता है ।
महाशिला कंटक संग्राम में चौरासी लाख मनुष्यों का हनन हुला।
निःशील, यावत् प्रत्याख्यान और पौषधोपवास रहित, रोष से भरे हुए, गुस्से हुए, युद्ध में घायल हुए, अनुप शांत-ऐसे वे मनुष्य काल समय में मरण प्राप्त कर अधिकतर नारक और तिर्यचों में उत्पन्न हुए । नोट-चमरेन्द्र ने महाशिला कंटक संग्राम विकुर्वित किया ।
'महाशिला कंटक' जो महाशिला के समान प्राणों का कंटक अर्थात घातक है वह महाशिला-कंटक कहा जाता है। अथवा तिनके की नोक से मारने पर भी हाथी, घोड़े आदि को महाशिला कंटक से मारने जेसी तीव्र वेदना होती है उस संग्राम को महाशिला कंटक' कहते हैं। भगवती टीका-महाशिला कंटक संग्राम का संबंध इस प्रकार था।
__ चंपानगरी में कणिक नामक राजा था। उसके हल और विहल्ल नामक दो छोटे भाई थे। वे दोनों सर्वदा सेचनक गंधहस्ति के ऊपर बैठकर विलास करते थे। उसे देखकर कूणिक राजा की पत्नी पद्मावती ने उन दोनों भाइयों से उस हस्ति को लेने के लिए कहा--
तब कूणिक ने उनके पास से हस्ति को माँगा। फलस्वरूप वे दोनों भाई कुणिक के भय से भागकर हस्ति और परिवार सहित वैशाली नगरी में स्वयं के मामा चेटक राजा के पास गये।
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