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तत्पश्चात कूणिक ने भाइयों से उसे वापस सौंप दे।
कूणिक ने कहलवाया कि यदि तुम दोनों भाइयों नहीं सौंपते हो तो युद्ध के करने के लिए तैयार हूँ ।
चेटक राजा ने भी युद्ध करने में अपनी स्वीकृति दी ।
फलस्वरूप कूणिक राजा ने स्वयं के कालकुमार आदि दस भाइयों को चेटक राजा के साथ युद्ध करने के लिए अपने पास बुलाया ।
इधर में युद्ध की बात जानकर चेटक राजा ने भी अठारह गणराजाओं को एकत्रित
किया ।
(
२६६ )
दूत
को
चेटक के पास भेजा और कहलवाया कि दोनों परन्तु चेटक राजा ने यह बात अस्वीकार की ।
फलस्वरूप युद्ध प्रारम्भ हुआ । चेटक राजा ने ऐसा नियम लिया था— एक दिन में एक बार एक बाण फेंकना, दूसरा नहीं । परन्तु उसका फेंका हुआ बाण कभी भी निष्फल नहीं जाता था ।
कूणिक के सैन्य का चेटक राजा के पास गया । सैन्य भाग गया ।
दंडनायक काल नाम उसका भाई था । चेटक ने उसे एक वाण से मार गिराया ।
दोनों सैन्य स्वयं के स्थान में गयी ।
दस दिनों में चेटक राजा ने कूणिक के कालादि दस भाइयों को मार गिराया ।
फलस्वरूप ग्यारहवें दिवस में कूणिक ने चेटक को जीतने के लिए देव की आराधना करने के लिए अष्टम तप ( तीन दिन का उपवास ) किया। उसके कारण शकेन्द्र और चमरेन्द्र आये ।
वह युद्ध करता हुआ फलस्वरूप कूणिक का
शकेन्द्र ने कहा कि चेटक परम श्रावक है इस कारण हम उसे नहीं मार सकते परन्तु तुम्हारी रक्षा करेंगे ।
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इस कारण शकेन्द्र कूणिक की रक्षा करने के लिए सारु वज्र के जैसा अभेद्य कवच किया और चमरेन्द्र ने दो संग्राम की विकुर्वणा की ।
इस प्रकार महाशिला कंटक और रथ मुसल संग्राम जानना ।
४ सूर्याभदेव द्वारा नाटक :
[ ५४ ] तप णं से सूरिआभे देवे समणेणं भगवाया महावीरे एवं बुत्ते समाणे तुट्टत्तिमार्णदिए [ पृ० ४७ पं० ३- ] परमसोमणस्सिए समणं भगवंतं महावीरं वंदति नम॑सति वंदित्ता नर्मसिता एवं वदासी - तुम्भे णं भंते! सर्व जाणह सव्वं पासह सव्वओ जाणह सम्बओ पासह, सम्बं कालं
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