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कि रथमुसल संग्राम है। हे भगवन् ! जब रथमुसल नाम संग्राम हुआ था तब कौन विजय हुआ । और कौन पराजय हुआ । हे गौतम! वजी (इन्द्र), विदेह पुत्र ( कूणिक) और असुरेन्द्र असुर कुमार राजा चमर जीता। नवमल्लकी और नवलेच्छकी राजा पराजय हुए।
उसके बाद वह कुणिक राजा रथमुसल संग्राम उपस्थित हुआ जान कर (स्वयं के कौटुम्बक पुरुषों को आह्वान करता है। शेष का सर्ववृतान्त - महाशिला कंटक संग्राम की तरह जानना चाहिए । परन्तु विशेष यह है कि यहाँ भूतानंद नामक प्रधान हस्ति था यावत कूणिक राजा रथमुसल संग्राम में गया ।
उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है इस प्रकार पूर्व की तरह रहते हैं । पीछे असुरेन्द्र असुर कुमार का राजा चमर एक मोटा लोढा का किठीन ( बाँस का बनाया हुआ तापस का पात्र ) जैसा कवच विकुर्वित कर रहा ।
इस प्रकार तीन इन्द्र युद्ध करते है - जैसे - देवेन्द्र, मनुजेन्द्र और असुरेन्द्र ।
अस्तु कृणिक एक हाथी से भी शत्रुओं को पराजित करने में समर्थवान है यावत् उसने पूर्व कहे प्रमाण शत्रुओं को चारों दिशाओं में भगा दिया ।
हे भगवन् ! किस कारण से उसे रथमुसल संग्राम कहा जाता है ।
हे गौतम! जिस समय रथमुसल संग्राम हुआ था उस समय अश्वरहित, सारथि रहित, योद्धाओं से रहित और मुसल सहित एक रथ घने जन-संहार को, जनवध को, जनप्रमर्द को जनप्रलय को - वह लोहि के कीचड़ को करता हुआ चारों तरफ चारों बाजु में दौड़ता है उस कारण से उसे रथमुसल संग्राम कहा जाता है ।
रथमुसल संग्राम में छिन्नवे लाख मनुष्य मारे गये ।
हे भगवन् ! शील रहित वे मनुष्य यावत् कहाँ उत्पन्न हुए ।
हे गौतम! उनमें दस हजार मनुष्य एक मच्छली के उदर में उत्पन्न हुए । एक देव लोक में, एक उत्तम कुल में उत्पन्न हुए ।
और अवशेष मनुष्य ज्यादा तर नारकी तथा तिर्यं चयोनि में उत्पन्न हुए ।
नोट - देवेन्द्र - शक्रेन्द्र - कूणिक राजा का पूर्व संगतिक – पूर्वभव सम्बन्धी मित्र था और असुरेन्द्र चमर - - कूणिक राजा का पर्याय संगी तक -- तापस की अवस्था में मित्र था । कारण शक्रेन्द्र और असुरेन्द्र ने कूणिक राजा को सहायता दी ।
इस
'१ महासिला - कंटक - संग्राम
नाममेयं अरहया, सुयमेयं अरथा, विण्णांयमेयं अरहया - महासिला कंटप संगामे महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जहत्था ? के
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