________________
( २३. ) ग्रहों को ग्रहण किया गया है (-टी०) क्योंकि मनुष्य लोक में और मनुष्य लोक के बाहर एक-एक चंद्र-सूर्य रूप युगल के ८८८८ ग्रह होते हैं ।
गतिशील केतु, नाना आकार वाले अठ्ठावीस प्रकार के नक्षत्र देवगण और पाँचों वर्ण के तारा जाति के देव प्रकट हुए। उनमें स्थित ( =गति रहित) रहकर प्रकाश करने वाले और निरन्तर (अविश्राम ) मंडलाकार गति से चलने वाले दोनों तरह के ज्योविष्क देव थे।
प्रत्येक ने स्वनामाङ्कित विमान के चिह्न में मुकुट धारण किये हुए थे। वे महद्धिक थे-यावत पयंपासना करने लगे।
टिप्पण- 'धूम केतु' के अतिरिक्त जलकेतु आदि केतुओं का केऊ य गहूरइया पदों के द्वारा उल्लेख किया गया है । ११ वैमानिक देवों का
तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवओ महावीरस्स वेमाणिया देषा अंतियं पाउन्भवित्था। सोहम्मीसाण-सर्णकुमार-माहिद-वंभ-लंतक-महामुक्क-सहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुयवई पहिट्ठा देवा। जिण-दसणुस्सुगागमण-जणियहासा पालक-पुष्फक-सोमणस-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल सव्यओभह-णामधिज्जेहिं विमाणेहिं ओइण्णा वंदका जिणिदं। मिग-महिसवराह - छगल-दुर - हय-गयवइ-भुयग-खग्ग-उसभंक-विडिम-पागडिय-चिंधमउडा पसिढिल-वर-मउड-तिरीड धारी कुंडल उज्जोवियाणणा मउउ-दित्तसिरया। रत्ताभा पउमपम्हगोरा सेया सुभ-वण्ण-गंध-फासा-उत्तम-विउविणो विविहवस्थगंधमल्लधरा महिड्ढिया महज्जुइया जाव पंजलिउडा पज्जुषासंति ।
-ओव• सू ५१ उस काल उस समय में श्रमन् भगवान महावीर के समीप में सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र, सहस्र, आणत, प्राणत, आरण और अच्युत देव लोकों के पति-इन्द्र आये थे । वे सब देव अत्यंत प्रसन्न थे।
वे जिन के दर्शन पाने को उत्सुक और आगमन से उत्पन्न हुए हर्ष युक्त थे।
वे जिनेन्द्र के वन्दक देव-१-पालक, २–पुष्पक, ३--सोमनव, ४-श्री वत्स, ५-नन्द्यावर्त, ६-कामगम, ७-प्रीतिगम, ८-मनोगम, ६-विमल और १० सर्वतोभद्र, नाम के विमानों में अवतीर्ण हुए। (= जमीन पर आये)। वे इन्द्र १ --मृग, २.-महिष (=भैंसा )३-वराह, ४ . छगल (=बकरा) ५-मेंढक, ६-घोड़ा, ७-गजपति (श्रेष्ठ हाथी)८-भुजंग, ६-खग्ग और १०-वृषभ के चिन्हों में विस्तृत मुकुटों को पहने हुए थे। वे मुकुट ढीले बंधन वाले थे। कानों के कुंडलों की प्रभा से उनके मुख उद्योत से युक्त हो रहे थे और मुकुटों में उनके शिर दीठ थे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org