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( २६२ ) संतिइमस्स सुचरियस्स तव-नियम-संजय-बंभचेर जाव भुंजमाणी विहरामि से तं साहुणी।
-दसासु द १० इस पवित्र आचार, तप, नियम और ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष है तो मैं भी इसी प्रकार के सुखों का अनुभव करूँगी। यही आशा ठीक है ।। निर्ग्रन्थी के द्वारा कृत निदान कर्म का फल
एवं खलु समणाउसो। निग्गंथी णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणा. लोइय अप्पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति । महड्ढिएसु जावसाणं तत्थ देवे भवति । जाव भुंजमाणी विहरति ।
तस्सणं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एतेसिणं अण्णत्तरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति । सा णं तत्थ दारिया भवति सुकुमाला जाव सरूवा ।
दसासु० द. १० हे आयुष्मन् ! श्रमण ! इस प्रकार निर्ग्रन्थी निदान करके और उसका बिना गुरु से आलोचन किये तथा बिना उससे पीछे हटे मृत्यु के समय काल करके देवलोकों में से किसी एक में देवरूप से उत्पन्न हो जाती है । वह ऐश्वर्य शाली देवों में देव हो जाती है । वहाँ सम्पूर्ण दैविक सुग्बों का अनुभव करती हुई विचरती है। फिर वह देवलोक से आयु, भव और स्थिति के क्षय होने के कारण बिना अन्तर के देव शरीर को छोड़कर, जो ये उग्र और भोगकुलों में महामातृक और भोगों के अनुरागी पुत्र हैं उनमें से किसी एक कुल में कन्या रूप से उत्पन्न हो जाती है। वहाँ वह सुकुमारी और रूपवती बालिका होती है। निदान कृत कुमारी की यौवनावस्था और उसके विवाह का वर्णन
ततेणं तं दारियं अम्मापियरो आमुक्कबाल-भावं विण्णाय-परिणयमित्तं जोवणगमणुप्पत्तं पडिरूवेणं सुक्केणं पडिरूवस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलयंति। सा तस्स भारिया भवति एगा एगजाया इट्ठा कता जाव रयण-करंडग-समाणा।
तीसे जाव अतिजायमाणीए व निजायमाणीए वा पुरतो महं दासी दास जावकि ते आस गस्स सदति ।
-दसासु० द १०
इसके अनन्तर जब कन्या बालभाव को छोड़कर विज्ञान में परिपक्व हो जाती है और युवावस्था में पदार्पण करती है तो उसके माता-पिता तदुचित दहेज के साथ उसको
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