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हे आयुष्यमन् ! भमण ! इस प्रकार निदान कार्य का यह पाप रूप फलविपाक होता है कि उसके करनेवाली स्त्री में केवल-भाषित धर्म सुनने की शक्ति नहीं रहती। चतुर्थ निदाननिर्ग्रन्थी का कुमारों को देखकर निदान कर्म का संकल्प करना
एवं खलु समणाउसो मएधम्मे पण्णत्ते इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे सेसं तं चेव जावं अंतं करेंति ।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिच्छाए पुरा जाव उदिण्णकामजान्या विहरेजा साय परक्कमेजा साथ परक्कममाणी पासेजा जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया तेसिंणं अण्णयरस्स अइजायमास्त वा जावकिते आसगस्स सदति जं पासित्ता णिग्गंथी णिदाणं करेति ।
-दसासु० द १० हे आयुष्यमन् ! श्रमण ! इस प्रकार निश्चय से मैंने धर्म प्रतिपादन किया है। यही निर्ग्रन्थ प्रवचन यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
जिस धर्म की शिक्षा के लिए उपस्थित होकर विचरती हुई निग्रन्थी पूर्व बुभुक्षा से उदीर्ण काया होकर विचरे और फिर संयम में पराक्रम करे तथा पराक्रम करती हुई देखे कि जो ये उग्र और भोग कुलों के महामातृक पुत्र है उनमें से किसी एक के घर के भीतर ( अथवा घर से बाहर ) जाते हुए सेवक प्रार्थना करते हैं कि आपके मुख को क्या अच्छा लगता है उसको देखकर निर्ग्रन्थी निदान कर्म करती है । स्त्री को देखकर अन्य लोगों की कामना और स्त्री के कष्टों का विवेचन
दुक्खं खलु इत्थि-तणए, दुस्संचराई गामंतरणहं जाव सन्निवसंतराई।
से जहानामए अंब-पेसियाति वा माउलुंगपेसियाइ वा अंवाडग • पेसियाति वा उच्छु-खंडियाति वा संबलि–फालियाति वा बहुजणस्स
आसायणिज्जा पत्थणिज्जा पीहणिज्जा अभिलसणिज्जा एवामेव इत्थियावि बहुजणस्त आसायणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खलु इत्थितणए पुमत्ताए णंसाहू।
-दसासु द १० संसार में स्त्री होना अत्यन्त कष्टप्रद है क्योंकि स्त्रियों का एक गाँव से दूसरे गाँव और एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव में आना-जाना अत्यन्त कठिन है। जेसे आम की फांक, मालिङ्ग (विजोरे) की फांक, आभ्रातक (बहुबीज फल) की फांक, मांस की फांक,
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