________________
( २७४ )
यदि इस उप-नियम का कुछ विशेष फल है तो हम भी आगामी काल में इस प्रकार के देव सम्बन्धी भोगों को भोगते हुए विचरें ।
यह हमारा विचार सर्वोत्तम है ।
शेष सब वर्णन पूर्ववत ही जानना चाहिए ।
देवलोकों के सुखों सा वर्णन, फिर च्यवनकर मनुष्य बनने का अधिकार
एवं खलु समणाउसो निग्गंथो वा ( निग्गंधी वा ) णियाणं किच्या तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्क ते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोपसु देवत्ताए उववत्तारो भवति । तं जहा - महढिएसु महज्जुहएसु जाव पभासमाणे अण्णेसि देवाणं अण्णं देविं तं चेव जाव परियारेति ।
सेणं ताओ देवलोगाओ आउक्खपणं तं चेव जाव पुमत्ताए पश्चायाति किं ते आसगस्सं सदति ।
- दसासु० द १०
हे आयुष्यमन् ! श्रमण ! इउ प्रकार निदान कर्म करके निर्बंध या निर्ग्रन्थी बिना उसी समय उसकी आलोचना किये और बिना उससे पीछे हटे मृत्यु के समय काल करके देवलोकों में से किसी एक में देव रूप से उत्पन्न होता है । वह वहाँ महाऐश्वर्यशाली और महाद्युति वाले देवों में प्रकाशित होता हुआ अन्य देवों की देवियों से पूर्वोक्त तीनों प्रकार से मैथून उपभोग करता हुआ विचरता है । फिर उस देवलोक से आयु क्षय होने के कारण पूर्ववत् पुरुष रूप से उत्पन्न होता है और दास-दासियों से प्रार्थना करती है कि आप के मुख को क्या अच्छा लगता है ।
'७.२ निह्नबवाद :―
१. बहुरत - भगवान् महावीर के श्रावस्ती नगरी में बहुरतवाद की उत्पत्ति हुई ।
कैवल्य ज्ञान प्राप्ति के चौदह वर्ष पश्चात् इसके प्ररूपक आचार्य जमाली थे ।
जमाली कुंडपुर नगर के रहने वाले थे। महावीर की बड़ी बहिन थी। जमाली का साथ हुआ।
उनकी माता का नाम सुदर्शना था । वह विवाह भगवान की पुत्री प्रियदर्शना के
जमाली पाँच सौ पुरुषों के साथ भगवान् के पास दीक्षित हुए । उनके साथ-साथ उनकी पत्नी प्रियदर्शना भी हजार स्त्रियों के साथ दीक्षित हुई । जमाली ने ग्यारह अंग पढे । वे अनेक प्रकार की तपस्याओं से अपनी आत्मा को भावित कर विहार करने लगे ।
Jain Education International
कुछ आचार्य यह भी मानते हैं कि ज्येष्ठा, सुदर्शना, अनवधांगी - ये सभी नाम जमाली की पत्नी के है
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org