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१ वृश्चिकविद्या २ मूषकविद्या ३ वराहीबिद्या ४ सर्पविद्या ५ मूर्गाविद्या ६ काकविद्या ७ पोताकीविद्या
गुप्त ने यह सुना ! वह अवाक् रह गया । कुछ क्षणों के बाद वह बोलागुरूदेव | अब क्या किया जाये ! क्या में नहीं भाग जाऊँ । आचार्य ने कहा- वत्स ! भय मत खा । मैं तुझे इन विद्याओं की प्रतिपक्षी सात विद्याएँ सिखा देता हूँ तु आवश्यकता वश उनका प्रयोग करना । रोहगुप्त अत्यन्त प्रसन्न हो गया । आचार्य ने उसे सात विद्याएँ सिखाई ।
१- मायुरी
२ - साकुनी
३ - विडाली
४- व्याघ्री
आचार्य ने रजोहरण को मंजितकर रोहगुप्त को देते हुए कहा- वत्स ! इन सात विद्याओं से तु उस परिव्राजक को पराजित कर सकेगा। यदि इन विद्याओं के अतिरिक्त किसी दूसरी विद्या की आवश्यकता पड़े तो तु इस रजोहरण को घुमाना । तू अजेय होगा, तुझे तब कोई पराजित नहीं कर सकेगा । इन्द्र भी तुझे जीतने में समर्थ नहीं हो सकेगा ।
रोहगुप्त गुरुका आशीर्वाद से राजसभा में गया । राजा बलश्री के समक्ष वाद करने का निश्चय कर परिव्राजक पोट्टशाल से बुला भेजा। दोनों वाद के लिए प्रस्तुत हुए । परिवाजक ने अपने पक्ष की स्थापना करते हुए कहा राशि दो है- जीवराशि और अजीव राशि | रोहगुप्त ने जीव, अजीव और नोजीव इन तीन राशियों की स्थापना करते हुए - परिव्राजक का कथन मिथ्या है। विश्व में प्रत्यक्षतः तीन राशियाँ उपलब्ध होती है । नारक, तिर्यंच, मनुष्य आदि जीव है । घट, पट आदि अजीव है और बुंकुंदर की कटी हुई पूंछ नोजीव है आदि-आदि। इस प्रकार अनेक युक्तियों के द्वारा रोहगुप्त ने परिव्राजक को निरुत्तर कर दिया ।
कहा
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७. अबद्धिक --
५- सिही ६ - उलुकी ७- उलावकी
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गुप्त ने अपनी मति से तत्त्वों का निरुपण किया और वैशेषिक मत की प्ररूपणा की। उनके अनेक शिष्यों ने अपनी मेघा शक्ति से उन तत्त्वों को आगे बढ़ाकर उसको प्रसिद्ध किया ।
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पंचा संया चूलसीआ तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स । अब द्धिगाण दसपुरनगरे
दिट्ठी
समुघन्ना ॥
भगवान महावीर के निर्वाण के ५८४ वर्ष पश्चात् दशपुर नगर में अबद्धिक मत का प्रारंभ हुआ। इसके प्रवर्तक थे- आचार्य गोष्टामाहिल ।
आव० भाष्य गा० १४१
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