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( २४५ ) (ख) महाशक देवलोक के महाप्सर्ग विमान से दो देवों का
तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमाणाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महाणुभागा भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउठभूया। तएणं ते देवा समण भगवं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छति
कतिणं भंते। देवाणुप्पियाणं अंतेवासी-सयाई सिझिं हिंति जाव अंतंकरेहिति ?
तएणं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहि मणसा पुढे तेसिं देवाणं मणसाचेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलुदेवाणुप्पियाण। ममसत्त अंतेवासीसयाइसिजिझहिति जाव अंतं करेहिति ।
तएणं ते देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा पुढणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा हद्वतुट्ट (चित्त माणं दिया णंदियापीइमणा परम-सोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण) हियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नम-सित्ता मणसा चेव सुस्सू समाणा न समाणा अभिमुहा (विणएणं पंजलियडा ) पज्जुवासंति।।
-भग श ५/उ ४/सू ८३, ८४/सू२०२
उप्त काल उस समय में महाशुक नामक देवलोक से महासर्ग नामक मोटे विमान से मोटी ऋद्धिवाले यावत् मोटे भाग्य बाले दो देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रादुर्भत हुए। उन दोनों ने श्रमण भगवान महावीर को मन से ही वंदन और नमन किया। तथा मन से ही ऐसा प्रश्न पूछा
प्र. हे भगवन् ! आप देवानुप्रिय के कितने शिष्य सिद्ध होंगे यावत सर्व दुःखों का अंत करेंगे।
उत्तर-उसके बाद उन देवों ने मन से ही प्रश्न पूछे। बाद में श्रमण भगवान महावीर ने भी उन देवी को उन प्रश्नों का उत्तर मन से ही दिया।
हे देवानुप्रिय ! हमारे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत सर्व दुःखों का अंत करेंगे।
इस प्रकार मन से पूछे गये ऐसे भ्रमण भगवान महावीर ने उन देवों से उन प्रश्न का उत्तर मन सेही दिया।
इस कारण से वे देव हर्षित, तोधित, यावत हृतहृदय वाले हो गये।
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