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( २३१ ) वे लाल बर्णवाले, कमलगर्भ के समान पीले वर्ण वाले और सफेद वर्ण वाले थे। वे उत्तम वक्रिय करने की शक्तिवाले थे। विविध वस्त्र, गंध और माल्य के धारक, महर्द्धिक, महा तेजस्वी यावत हाथ जोड़कर पर्युपासना करने लगे।
टिप्पण-वैमानिक देवों के देहों के तीन रंग है। पहले और दूसरे स्वर्ग के देवों के शरीर का लाल, तीसरे-चौथे पांचवे स्वर्ग के शरीर का वर्ण पीला और आगे के स्वों के देवों के शरीर का वर्ण सफेद होता है।
.१२ सुसुमार नगर में चमरेन्द्र का आगमन(क) श्रीवीरशरणस्थोहं जीवन्मुक्तो बिडौजसा ।
इहाऽऽगच्छं चलत भो ! गत्वा वंदामहे जिनम् ॥ इत्युक्त्वा सपरीवारश्चमरः प्रभुमाययौ। नत्वा चक्रे च संगीतं जगाम स्वांपुसरी ततः ॥
---त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग ४/श्लोक ४ ६५, ६६ चमरेन्द्र ने आगत सामानिक देवों को बोला कि श्री वीरप्रभु के शरण में जाने से इन्द्र ने मुझे जीवन्मुक्त किया इसलिए मैं यहाँ वापस आ गया। तुम सब चलो हम सबको भगवान महावीर को वंदन करना चाहिए। ऐसा कहकर चमरेन्द्र स्वयं के सर्व परिवार के साथ प्रभु के पास आया और प्रभु को नमस्कार कर, संगीत करके वापस स्वयं की नगरी में गया । (ख) श्रीषीरोऽप्यगमद् ग्रामे मेंढकनामनामनि ॥६१६॥
चमरेन्द्रस्तत्र चैत्य भगवन्तमवन्दत । पृष्ट्या सुखविहारं च जगाम भवनं निजम् ।।
-त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ४ मिढियगामे चमरो वंदण पियपुच्छणं कुणइ ।
-आव० निगा ५२३ मलायटीका-तथा मिण्ढिकग्रामे चमरो वंदनं प्रियपृच्छनं करोति ।
जब भगवान जभक ग्राम से बिहार कर मेंढक ग्राम पधारे तब चमरेन्द्र ने आकर वंदना की । सुग्ण विहार पूछकर अपने स्थान चला गया। .१३ विभिन्न देषों का आगमन-ग्यारहर्षे चतुर्मास के पूर्व(क) महिमानं प्रभोश्चक्रुः कौशाम्बी च ययौ प्रभुः ॥३३८॥
तत्रार्केन्दू सधिमानौ जिनेन्द्र प्रतिमास्थितम् । भक्त्याऽभ्येत्य ववन्दाते सुयात्राप्रश्नपूर्वकम् ॥३३९॥
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