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( २३५ ) उस कल उस समय में राजगृह नाम का नगर था। उसमें गुणशिलक नाम का चैत्य था। उस नगर का राजा श्रेणिक था । उस काल उस समय में भगवान महावीर पधारे । जन-समुदाय रूप परिषद् धर्म को सुनने के लिए निकली।
उस काल उस समय में ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजाचंद्र चंद्रावतंसक विमान में सुधर्म सभा में चंद्र सिंहासन पर बैठे हुए चार हजार सामानिकों के साथ यावद विराजे हुए है।
ज्योतिषियों के इन्द्र चंद्रमा ने इस जंबूद्वीप नामक संपूर्ण मध्य जंबूद्वीप से विशाल अवधि शान से अवलोकन करते हुए भगवान महावीर को मध्य जंबूद्वीप में देखा। और उनका दर्शन करने के लिए जाने की इच्छा की। और उन्होंने सुर्याभ देव के समान ही आभियोग्य देवों को बुलाये और उनसे कहा-हे देवानुप्रियो ! तुम मध्य जंबूद्वीप में भगवान् के समीप जाओ और वहाँ जाकर संवर्तक वात आदि की विकुर्वणा करके कूड़ा-कचड़ा आदि साफ कर सुगंध द्रव्यों से सुगंधित कर यावत् योजन परिमित भूमंडल को सुरेन्द्र आदि देवों के जाने-आने बैठने आदि आदि के योग्य बनाकर खबर दो।
__ वे पाभियोग्य देव उपरोक्त आज्ञानुसार भूमंडल तैयार कर खबर देते हैं। फिर चंद्र देव ने पदाति सेन नामक देव को कहा कि जाओ सुस्वरा नाम की घंटा को बजाकर सब देवी-देवों को भगवान के पास वंदनाथ चलने के लिए सूचित करो। फिर उस देव ने वैसा ही किया।
सुर्याभ देव के वर्णन से विशेष केवल इतना ही है कि इसकी यान विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण था और साढ़े तीरसठ योजन ऊँचा था। तथा महेन्द्रध्वज पच्चीस योजन ऊँचा था और इसके अतिरिक्त सभी वर्णन सुर्याभ देव के समान समझना चाहिए ।
जिस प्रकार सूर्याभदेव भगवान के समीप आये, नाट्यविधि का और वापस लौट गये वैसे ही चंद्र देव के विषय में जानना चाहिए । (ज) ज्योतिषीदेव का इन्द्र-सूर्य देव का
तेण कालेण तेण समएण रायगिहे नाम नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। समोसरणं । जहाचंदो तहा सूरो वि आगओ जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी नयरी । सुपइ8 नाम गाहावई होत्था अड्ढे जहेव अंगई जाव विहरइ ।
--निर० व ३/अ २/पृ ३६, ३७ उस काल उम समय में राजगृह नामकी नगरी थी। उस नगरी में गुणशिलक नाम का चैत्य था । उस नगरी में श्रेणिक नाम के राजा थे।
वहाँ श्रमण भगवान महावीर पधारे। .
जिस प्रकार चंद्रमा आये, उसी प्रकार सूर्य भी आये। और यावद नाट्य-विधि दिखाकर चले गये।
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