________________
( २२६ ) .७ चंपानगरी में देवों का आगमन .१ असुरकुमारों का- . तेण कालेण तेण समएण समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारादेवा अंतियंपाउन्भवित्था, कालमहाणीलसरिसणीलगुलियगवलअयसिकुसुमप्पगासाविसियसयव त्तमिव पत्तलनिम्मलाईसीसियरत्ततंबणयणा गरुलाययउज्जुतुं गणासा ओयवियसिलप्पवालबिंबफलसण्णिभाहरोठा पंडुरससिसयलघिमलणिम्मलसंखगोखीरफेणदगरयमुणालियाधवलदंतसेटी हुयवहणिद्धतधोयतत्ततषणिजरत्ततलतालुजीहा अंजणघणकसिणरुयगरमणिजणिद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अह. चंदणाणुलित्तगत्ता ईसीसिलिंघपुष्फप्पगासाई' असंकिलिठाई सुहुमाई घत्थाई पवरपरिहिया वयं व पढमं समकता बिइयं च असंपत्ता भहे जोधणे वट्टमाणा तलभंगयतुडियपवरभूसणनिम्मलमणिरयणमंडियभुया दसमुहामंडियग्गहत्था चूलामणिचिंधगया सुरूवा महड्ढिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा हारविराइयवच्छा कडगतुडियथंभियभुया अंगयकुंडलमगंडतला कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवर वत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणाभासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्येणं षण्णेणं दिवेणंगंधेणंदिव्वेणं रूवेणं एवं फासेण संघाएणं संठाणेणं दिव्वाए इढीए जुईए पभाएछायाएअञ्चीए दिवेणं तेएणं दिव्वाएलेसाए दस दिसाओ उजोवेमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागप्प रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेन्ति २ त्ता वंदंति णमंसंति [वंदित्ता णमंसित्ता [साइ साइणामगोयाइसावेन्ति] णञ्चालण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा अभिमुहा विणएण पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥
-ओव० सू ४७ चंपा नगरी में देवों का आगमन
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के समीप बहुत से असुरकुमार देव प्रकट दए।
देवों का शरीर और शृगार उनका वर्ण-काली महानील मणि के समान था और नीलमणि, गुलिका, मैंसे के सौंग और अलसी के फूल के समान दीप्ति थी।
विकसित शतपत्र (= कमल ) के समान निर्मल पक्ष्मल ( =बरौनी वाले ) कुछ कुछ सफेद, लाल और ताम्रवर्णवाले उनके नयन थे। उमकी नासिका गरुड़ की नाक-सी लम्बी, सीधी और ऊँची थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org