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( १८२ ) स्वामी पीतभयमपि विहारेण पुनाति चेत् । तत्पादमूले प्रवज्यामादाय स्यां तदाकृती ॥ ६१७ ।। धयं चाभय ! तज्ज्ञात्वा तदनुग्रहकाम्यया । चंपापुर्याः प्रचलिताः समवासार्म तत्पुरे ॥ ६१८ ॥ अस्मान्प्रणम्य श्रुत्वा च देशनां गतवान् गृहे।
-त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ११ उदायन राजा ने विचार किया
यदि महावीर स्वामी इस वीतमय नगर को स्वयं के विहारसे पवित्र करे तो मैं उनके चरण में दीक्षित होकर xxx
भगवान ने अभयकुमार को कहा- अभय कुमार ऐसा उनका अध्यवसाय जानकर उनका अनुग्रह करने की इच्छा से मैंने चंपा नगरी से विहार कर वीतमय नगर पदार्पण किया।
___ उदायन राजा हमारे पास आकर, वंदन कर, देशना सुनकर वापस अपने घर गया। (३१) भगवान् महावीर का दशार्ण नगर से विहार(क) जगन्नाथोऽपि भव्यनामुपकारपराणः । विजहार ततः स्थानादन्येषु नगरादिषु ॥५६॥
-त्रिशलाका० पर्व० १०/सर्ग १० दशार्णभद्र राजा को दीक्षित कर भगवान महावीर ने भव्य जनों के उपकार के लिए दशार्ण नगर से अन्य नगर आदि स्थान में विहार किया । (ख) दशार्ण देश में आगमन -दशार्णनगर
इतश्च पुर्याश्चम्पायाः सुरासुरसमावृतः। क्रमेण विहरन् प्राप दशार्णविषयं प्रभुः॥१॥ दशाणपुरमित्यस्ति नाम्ना तत्र महापुरम् । दशार्णभद्र इत्यासीत्तत्र राजा महद्धिकः ॥ २॥
इतश्च तत्र भगवान् पुरावहिरूपाययौ। देवश्च तत्र समवसरणं व व्यरच्यत ॥१०॥
–त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग १०
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