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( १८८ ) . उस काल--उस समय में काकन्दी नाम की नगरी थी। उस काल-- उस समय में श्री भगवान महावीर स्वामी काकन्दी नगरी के बाहर विराजमान हो गये ।
और तत्पश्चात भी भगवान महावीर स्वामी जनपद-विहार के लिए बाहर गये ।
(ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नाम नयरी होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धा। सहसंबवणे उजाणे-सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे । जियसत्तूराया ॥ xxx ॥४॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणेभगवं महावीरे समोसहे। परिसा निग्गया। जहा कोणिओ तहानिगाओ। तएणं समणे भगवं महावीरे अणया कयाइ कायंदीओ नयरीओसहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२८॥
-अणुत्त० व ३/ १ सू ४,१०,२८ उस काल उस समय में कांकदी नाम की नगरी थी। वह सब तरह के ऐश्वर्य और धन-धान्य से परिपूर्ण थी। उसमें किसी भी प्रकार के भी भय की शंका नहीं थी। उसके बाहर एक सहस्राम्रवन नाम का उद्यान था। जो सब ऋतुओं में फल और फूलों से भरा रहता था। उस नगरी का जितशत्रु नामक राजा था।
- उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। नगर की परिषद मण्डली उनके वन्दनार्थ गयी। कोणिक राजा के समान जितशत्रु राजा भी गया ।
भमण भगवान महावीर अन्यदा किसी समय कांकदी नगरी के सहस्राम्रवन उद्यान से निकल कर बाहर जनपद के लिए विचरने लगे।
(ग) तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तूराया ।x x x | तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं । x xx। सामी बहिया जणवयविहारं विहरह।
-अणुत्त० ३/अर/सू० ६५, ६८-७.
उस काल उस समय में काकन्दी नाम की नगरी थी। उस नगरी का राजा जितशत्रु था। उस काल समय में श्री श्रमण भगवान महावीर सहस्त्राम्रवन उद्यान में पधारे। वहाँ सुनक्षत्र कुमार को अनगार बनाया । फिर वहाँ से अन्यत्र विहार किया ।
.४० कुंडग्राम-श्राह्मणकुंडग्राम-क्षत्रियकुंडग्राम में
(क) समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाप सघण्णू सम्पदरिती माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेहए अहापडिरूर्ष x x x विहरइ ।
-भग० श/९/७३३/ सू० १५७/पृ. ४३८
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