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( १८७ ) तपणे समणे भगवं महाधीरे x x x पुव्वाणुपुन्धि (परमाणे गामाणुगाम) दूरजमाणे जेणेव हथिसीसे नयरे जेणेव पुप्फकरंडयउज्जाणे जेणेष कयवणमाजपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिमषं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेभाणे पिहरइ ॥ परिसा राया निग्गए ॥३२॥
-विवा० भ २/ १ उस काल-उस समय में हस्तिशार्प नामक एक नगर था, उसके बाहर उत्तर-पूर्व दिशाओं के मध्य में पुष्पकरण्डक नामक एक अति रमणीय उद्यान अवस्थित था। उस नगर का राजा अदीनशत्र था।
भमण भगवान महावीर वहाँ पधारे । कोणिक राजा की तरह अदीनशत्रु भी भगवान के दर्शनार्थ वहाँ गया।
तत्पश्चात भमण भगवान महावीर किसी समय हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरंडक स्थान स्थित तमालाप्रिय नामक यक्षायतन से वर्हिगमन कर जनपद में विहार करने लगे।
उस काल-उसी समय (सुबाहुकुमार के संकल्प को जानकर ) क्रमशः ग्रामानुग्राम विहार करते हुये हस्तिशीष नगर के पुष्पकरण्डक उद्यानान्तर्गत कृतमालाप्रिय यक्षायतन में भमण भगवान महावीर पधारे एवम् यथा-प्रतिरूप अनगार वृत्ति के अनुकूल अवग्रह-ग्रहण कर वहाँ अवस्थित हो गये। हस्तिशीर्ष नगर से अन्यत्र विहार
ततेणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ हस्थिसीसाओ गगराओ पुप्फकरडाओ उजाणाओ कतपियणमालवजक्खायतणाओ पडिनिक्खमह पडिनिक्षमित्ता बहिया जणवयं विहरति । -विवा० श्रु २/अ १ स २८
वदनतर श्रमण भगवान महावीर ने किसी अन्य समय हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरडक उद्यानगतकृतवनमाल नामक यक्षायतन से विहारकर अन्यदेश में भ्रमण करना भारंभ कर दिया।
वापस फिर हस्तिशीर्ष नगर में पदार्पण हुआ था। .३९ कांकदी नगरी में (क) तेणं काले तेणं समएणं काकंदी नयरी |xxx६५ ॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं ॥६८। xxx ॥ सामी बहिया जणवयविहारं विहरह ॥ xxx|७०॥ :.
अणुत्त० . अ२/२६५, ६८, ७.।
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