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होत्था |तरण समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइ जावसमोसढे, परिसाजाव पडिगया ।
- भग श ७ / उ १० /
०२१४, २२१, २२२ / ३०६-३११-१२
राजगृह नगर के उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गुणशील चैत्य ( उद्यान ) में यावत् पधारे। यावत् परिषद् वापस चली गयी ।
किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से निकलकर बाहर जनपद में विचरने लगे । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पुनः राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में पधारे ।
. १४ राय गिहे जाव एवं वयासी x x x १५९ तपणं समणे भगवं महावीरे बहिया जाव विहरइ | ××× । १६०
- भगः श १८ / उद भगवान् महावीर राजगृह पधारे। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर बाहर के जनपद में विचरने लगे ।
फिर वापस भगवान् महावीर राजगृह पधारे। परिषद् वंदना कर चली गई ।
.१५ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था, चण्णओ । तस्स रायगिहस्स गयरस बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गुणसिलए णाम are होत्था । सेणिए राया, खिल्लणा देवी || ४ ||५|| ६ ||
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दृइजमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गह ओगिues, ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ||७||
परिसा निग्गया । धम्मो कहिओ । परिसा पडिगया ॥ ८॥
उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था । उस राजगृह नगर के बाहर उत्तर-पूर्व के दिशा भाग में अर्थात् ईशान कोण में गुणशिलक नाम का चैत्य-व्यं तरायतन था । श्रेणिक राजा था । चेलना नाम की रानी थी । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर पूर्वानुपूर्व - ग्रामानुग्राम विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर गुणशिलक चैत्य था वहाँ पधारे ।
परिषद् वंदन और धर्मश्रवण के लिए निकली । वापिस चली गई ।
-- भग० श १ / ३१ /
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भगवान् ने धर्म कहा । परिषद्
उस काल उस समय में इस जंबूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में राजगृह नाम का नगर था । गुणशिलक नाम का चैत्य था । उस राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा था ।
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