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४- एक तरफ से बांकी, दोनों तरफ से बांकी, एक तरफ से टूटी, दोनों तरफ से ट्टी, एक तरफ से चक्रवाल ( अर्द्धचंद्राकार )-दोनों तरफ से चक्रवाल (पूर्णचंद्राकार) इस प्रकार चक्रवाल नामक चतुर्थ नाटक बताया।
५-चंद्र की पंक्ति, सूर्यो' की पंक्ति, हंसपक्षी की पंक्ति, एकावलीहार, ताराओं की पंक्ति, कनकावली हार की पंक्ति, रत्नावली हार की पंक्ति, मुक्तावली की-इस प्रकार आवली आकार नामक पंचग नाटक बताया।
६-चंद्र के उदय होने का नियम, सूर्य के उदय होने का नियम। इस प्रकार सत्य प्रभृतिक नामक छठा नाटक बताया।
७-चंद्र के गमन का नियम, सूर्य के गमन का नियम, शयन का नियम, गमनागमन नामक सातवां नाटक बताया।
८-चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, आवरण नामक छटा नाटक दिखाया।
-चंद्र-अस्त होने का नियम, सूर्यास्त होने का नियम-अध मन प्रवृति नामक नवा नाटक बताया।
१.-चंद्र के मंडलाकार, सूर्य के मंडलाकार, नाग मंडलाकार, यक्ष मंडलाकार, भूत मंडलाकार, राक्षस मंडलाकार, गंधर्व मंडलाकार, इस प्रकार मंडल प्रभति नामक दसवाँ नाटक बताया ।
११-वृषभ की ललितं गति आकार, सिंह की ललित गति के आकार, घोड़े की ललित गति के आकार, ऐसे हस्ति की, मस्त घोड़े की विलास गति, मस्त गति विलास गति दूत विलम्बन नाम का ग्यारहवाँ दिव्य नाटक बताया।
१२--गाड़ियों के आकार, सागर के आकार, नगर के आकार, ऐसा सागर नगर विनति नाम का बारहवाँ नाटक दिखाया ।
१३-नन्दावर्त की तरह, चंद्रमावर्त की तरह, नन्दा प्रविभक्ति नामक प्रधान तेरहवाँ नाटक बताया।
१४-गच्छ का आकार, मगर के आकार, जरा जलचर नीवाकर, मरा जलचर जीवाकार, मच्छ-मगर-जरा-मरा के अंडे के आकार अण्डाकार नामक दिव्य नाटक चौदहवाँ बताया।
१५-कका नामक अक्षराकार खख्खा नामक अक्षराकार गंगा नामक अक्षराकार, घघा नामक अक्षराकार डड़ा नामक अक्षराकार इस वर्ग के पंच अक्षरों बाकार का रूप बनाकर पन्द्रहवाँ नाटक बताया।
१६--जिस प्रकार का 'क' वर्ग नाटक किया-ऐसे ही 'च' वर्ग के पाँच अक्षर (च, छ, ज, झ, ञ) के आकार रूप बनाकर सोलहवाँ नाटक बताया।
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