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( २१७ ) वन्दन नमस्कार कर अपने परिवार के साथ परिवारा हुआ उस ही दिव्य गमन के विमान में बैठा।
बैठकर जिस दिशा से आया था उस दिशा में वापस गया।
.४ भगवान महावीर को स्वस्थान स्थित देवों का वंदन
तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभेदेवे ( नाम ) सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्माए x x x दिव्वाई भोगभोगाई भुञ्जमाणे विहरइ, इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे पासह।
तत्थ समणं भगवं महावीर जंबुद्दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेहए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासइ, पासित्ता हद्वतु चित्तमाणं दिए x x x सीहासणाओ अब्भुट्टेइ अग्भुडित्ता पायपीढाओ पञ्चोकहइ पश्चोरूहित्ता पाउयाओ ओमुयइ अमुयइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेति करित्ता तित्थयराभिमुहे सत्तहपयाहिं अणुगच्छइ अणुगच्छित्ता णाम जाणुं अंचेइ दाहिणं जाणुं धरणितलंसी निहह, तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निमेइ निमित्ता ईसि पच्चुन्नमइ पच्चुन्नमित्ता xxx करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कह, एवं क्यासीनमोऽत्थुणं जाव x x x ठाणं संपत्ताणं ।
नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थयरस्स जाप संपाविउ कामस्स वदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगते, पासइ मे भगवं तत्थगते इहगतं ति कह, वंदर णमंसह वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए पुन्वाभिमुहं सण्णिसण्णे ।
-राय० सू० १२/१५/पृ० ४४/५० उस काल उस समय में प्रथम सौधर्म स्वर्ग के सुर्याभ नामक विमान की सुधर्म सभा में सूरियाम नामक सिंहासन पर, चार हजार सामानिक आदिदेव देवियों के साथ परिवरा हुआ-दिव्य प्रधान देव सम्बन्धी पाँचों इन्द्रिय के भोगोपभोग भोगते हुए विचरता था।
उस समय जंबूदीप नामक दीप को सम्पूर्ण विस्तीर्ण अवधि ज्ञान से देखता हुआ श्रमण भगवान महावीर को जंबुद्धीप के भरतक्षेत्र की आमल कप्पा नगरी के बाहर अंबशाल वन के चैत्य में यथा प्रतिरूप अवग्रह ग्रहण कर संयम-तप कर अपनी आत्मा को भावित करते हुए देखे।
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