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( २०५ ) पावापुरी के उस उद्यान में कायोत्सर्ग विधान से ठहर कर शेष अघातिया कामों को घातकर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि के चौथे पहर के अंत में वे त्रिलोकाधीप परमेश्वर वीर-जिनेश्वर निर्वाण स्थल को पहुंचे। (च) अंतिम विहार पावापुरी
जिनेन्द्रवीरोऽपि विवोध्य संततंसमंततो भव्यसमूहसंतति । प्रपद्य पाबानगरी गरीयसी मनोहरोद्यानवने तदीपके ।। सतुर्थकालेऽर्धचतुर्थमासके विहीनताविश्चतुरद्धशेषके । सकार्तिके स्वातिसुकृष्णपक्षे तसुप्रभातसमये स्वभावत ॥ अघाति कर्माणि निसद्धयोगको विधूपघाती धावद्धिबंधनं । विवन्धवस्थाममवाप शंकरो निरन्तरापोरसुखानुबंधनम् ॥
-हरिवंशपुराण सर्ग ६६ तीर्थकर महावीर जन-जन को उपदेश देते हुए मध्यमा पावानगरी में पधारें और वहाँ के एक मनोहर उद्यान में चतुर्थकाल के ३ वर्ष ८॥ मास बाकी रहने पर कार्तिक अमावश्या के प्रभात काल में योग का निरोध करके, कर्मों का नाश करके मुक्ति को प्राप्त हुए । ६. भगवान महावीर के समीप देवों का आगमन.१ सूर्याभ देव के आभियोगिक देवों का -
(क) तएणं ते आभियोगिया देवा सुरभियाभेणं देवेणं एवं वुत्ता xxx जेणेव जंबुद्धीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव आमलकप्पा णयरी जेणेव अंबसालवणे चेहए जेणेव समणं भगवं महावीरे तेणेच उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति वंदंति नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासि-अम्हेणं भंते । सूरियाभस्स देवस्स आभियोगा देवा देवाणुप्पियाणं वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्नुवासामो।
देवाइ समणे भगवं महावीरे ते देवे एवं वयासी-पोराणमेयं देवा ! जीयमेयं देवा ! किश्चमेयं देवा ! करणिजमेयं देवा ! आचिन्नमेयं देवा! अब्भणुण्णामेयं देवा! जंणं भवणवइ-चाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा अरहते भगवंते वदंति नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता तओ साइसाई णामगोयाई साधिंति तं पोराणमेयं देवा ! जाव अन्भणुण्णायमेयं देवा !
___-राय० सू १९/२०/० ५६/६०
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