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( १९. ) (घ) अपापा के बाद
अथ भण्यानुग्रहाय ग्रामाकरपुरादिषु । विहरन् ब्राह्मणकुण्डग्रामेऽगात् परमेश्वरः ॥१॥ बहुशालाभिधोद्याने पुरात्तस्मावहि स्थिते । चक्रुः समवसरणं त्रिवनं त्रिदशोत्तमाः ॥२॥
-त्रिशलाका• पर्व १.सर्ग
भव्यजनों के अनुग्रह के लिए ग्राम, आकर और नगर आदि में विहार करते हुए भी वीरप्रभु किसी दिन ब्राह्मणकंडग्राम पधारे। उसके बाहर बहुशाल नामक उद्यान में देवों ने तीन गढ़वाले समवसरण की रचना की। देवानंदा की दीक्षा के बाद
(च) भगवान् वर्धमानोऽपि जगदानन्दवर्धनः ।
विजहार ततो धात्री ग्रामाकरपुराकुलाम् ॥२८॥ क्रमाच्च क्षत्रियकुण्डग्रामं स्वामी समाययो।। तस्थौ समवसरणे विदधे चाथ देशनाम् ॥ २१ ॥
-त्रिशलाका• पर्व १./सर्ग
वर्धमान भगवान जगतजीवों के आनंद में वृद्धि करते हुए ग्राम, नगर, आकर से आकुल-ऐसी पृथ्वीपर विहार करने लगे। अनुक्रमतः प्रभु क्षत्रियकंड ग्राम पधारे । समवसरण में बैठकर भगवान ने देशना दी। ४. मोका नगरी में
(क) सेणं कालेणं तेणं समरण मोया नाम नयरी होत्था-वण्णओ॥१॥
तीसे ण मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभागे नंदणे नाम चेइए होत्था-वण्णओ ॥२॥
तेण कालेण तेण समएण सामी समोसढे। परिक्षा निग्गष्ण्द, पडिगया परिसा ॥३॥
-मग श३//१, २, ३
उस काल उस समय में 'मोका' नाम की नगरी थी। उस नगरी के बाहर उत्तरपूर्व विशि, अर्थात ईशान कोण में, नन्दन नामका चैत्य था। उस काल-उस समय में भ्रमण भगवान महावीर स्वामी यहाँ पधारे। भगवान के आगमन को सुनकर परिषद दर्शनार्थ उनके सन्निकट आई।
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