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( १५३ )
उस काल उस समय में भगवान् महावीर उल्लुकतीरनगर में एक जम्बू
पधारे ।
.६ मृगाग्राम में
तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था, चण्णओ ॥ ९ ॥ तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिलीभाए चंदणपायवे नामं उज्जाणे होत्था ॥ १० ॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे ( 'पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे मियग्गामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणे' ) समोसरिए ॥ १७ ॥
- विवा० श्रु ९ / १
उस काल --- उस समय में मृगाग्राम नामक एक सुप्रसिद्ध नगर था । उस मृगाग्राम नामक नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा के मध्य - ईशान कोण में संपूर्ण ऋतुओं में होनेवाले फल, पुष्पादि से युक्त चंदन- पादप नामक एक रमणीय उद्यान था ।
उस काल तथा उसी समय में श्रमण भगवान् महावीर मृगाग्राम नगर के बाहर चंदनपादप उद्यान में पधारे ।
.७ पुरिमताल नगर में
चैत्य में
तेणं कालेणं तेणं समपणं पुरिमताले नामं नयरे होत्था | xxx ॥ २ ॥
तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थणं अमोहदंसी उज्जाणे ॥३॥
तस्स णं पुरिमताले नयरे महब्बले नामं शया होत्या ॥५॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमताले नयरे समोसढे । परिसा निग्गया । या निग्गओ | धम्मो कहिओ । परिसा राया य गओ ॥ १२ ॥
-- विवा० श्रु १ / अ ३
उस काल उस समय में पुरिमताल नामक नगर था । उस पुरिमताल नगर के उत्तरपूर्व दिशा में अमोघदर्शी नामक उद्यान था । उस पुरिमताल नगर में महाबल नाम का
राजा था ।
उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर पुरिमताल नगर पधारे। परिषद् वंदनार्थं निकली। राजा भी आया । भगवान् ने धर्मकथा कही । धर्मोपदेश को सुनकर राजा तथा परिषद् दल वापिस अपने - अपने निवास स्थान लौट आये ।
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