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( १५६ ) .१३ राजगृह से कृतंगला नगरी पदार्पण तेइसवां वर्ष-आर्य स्कन्धक के समय में )
तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णाम जयरे होत्था। वण्णओ। सामी समोसढे। परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया-xxx १२
तएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जणबयविहारं विहरइ ॥१९॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नाम नगरी होत्था-धण्णओ ॥२०॥
तीसेणं कयंगलाए नगरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए छत्तपलासपनामं चेइए होत्था-वण्णओ ॥२१॥
तएणं समणे भगवं महावीरे उत्पन्ननाणदंसणधरे अरहाजिणे केवली जेणेव कयंगला नयरी जेणेव छत्तपलासए चेहए तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हर, ओगिण्हित्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेभाणे विहरइ जाव समोसरणं । परिसा निग्गच्छद ॥२२॥
तीसेणं कयंगलाए नयरीए अदूरसामते सावत्थी नाम नयरी होत्था । xxx॥२३॥
-भग० श२/७• १/ सू०२,१६ से २३/पृ• ७६/८२-८३ तएणं समणे भगवं महावीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तापलासाओ चेयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥५६॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया॥६५॥
उस काल उस समय में राजगृह नगर था। जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर परिषद् वापिस लौट गई।
एक समय श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के गुणशील चैत्य (बगीचे) से विहार किया। वहाँ से विहार कर, वे जनपद में विचरने लगे।
उस काल-उस समय में, कृतं गला नाम की नगरी थी। उस कृतंगला नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा के बीच में अर्थात् ईशान कोण से 'छत्रपालशक' नाम का चैत्य था । वहाँ किसी समय उत्पन्न हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। यावत् भगवान का समवसरण हुआ। परिषद् धर्मोपदेश सुनने के लिए गई।
उस कृतंगला नगरी के पास में श्रावस्ती नाम की नगरी थी।
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