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( १५७ ) इसके बाद भमण भगवान महावीर स्वामी कृतंगला नगरी के छत्रपलाशक उद्यान से निकले और बाहर जनपद में विचरण करने लगे।
उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। .१४ वाणिज्यग्राममें
(क) तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नयरे होत्था xxx जियसत्तराया, तस्स धारिणी नामं देवी ।xxx सामी समोसढे।
-दसासु० द ५/सू २ उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नगर था। वहाँ का राजा जितशत्रु था । उसकी धारिणी देवी थी। श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ।
(ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं धाणियगामे नाम नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्ध ॥२॥
तस्सणं वाणियगामस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए दूइपलासे नाम उजाणे होत्था ॥३॥
तत्थणं वाणियगामे नयरे मित्ते नाम राया होत्था-वण्णओ ॥५॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा पडिगया। रायाय गओ ॥१२॥
-विवा० श्रु १/अ २/सू २,३,५/११ उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नाम का एक समृद्धिशाली नगर था । उस नगर के ईशान कोण में द्य तिपलाश नाम का एक उद्यान था। उस वाणिज्यग्राम नगर में भित्र नाम का राजा था।
उस काल उस समय में भमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। परिषद् का आगमन हुआ। वहाँ का राजा भी कूणिक तरह दर्शनार्थ गया। भगवान ने धर्म का उपदेश दिया। (ग) इतश्वास्ति निरूपमं परमाभिर्विभूतिभिः ।
नाम्ना वाणिजकग्राम इति ख्यातं महापुरम् ॥२३५॥ तत्र प्रजानां विधिवत्पितेव परिपालकः । जितशत्रुरिति ख्यातो बभूव पृथिवीपतिः ॥२३६॥ आसीद् गृहपतिस्तत्रनयानन्ददर्शनः । आनंदो नाम मेदिन्यामायात इचचंद्रमाः ।।२३७।।
तदा च पृथ्वी विहरजिनः सिद्धार्थनन्दनः । तत्पुरोपवने दूतिपलाशे समवासरत् ॥२४॥
-त्रिशलाका पर्व १०/सर्गक
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