________________
( १७२ )
उस काल उस समय में आलं भिका नगरी थी । वहाँ शंखवन नामक उद्यान था । कुछ काल बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । परिषद् वंदनार्थ आयी
'२१ काशी नगरी - वाराणसी में -
(क)
इतश्च का शिर्नाम्नाऽनुगं गमास्ति पुरीवरा । विचित्ररचनारम्या तिलकश्रीरिवावने ॥२७६॥
सूत्रामेवामरावत्यामविसूत्रितविक्रमः
1
धरित्रीधवपुंगवः ॥ २७७॥
जितशत्रुरभूत्तत्र
आसीद्गृहपतिस्तस्यां महेभ्यश्चुलनीपिता । प्राप्तो मनुष्यधर्मेव मनुष्यत्वं कुतोऽपिहि ॥ २७८ ॥
X
X
X
तस्या पुर्यामथान्येद्य रुद्याने कोष्टकाभिधे । भगवान् समवसृतो विहरश्वरमो जिनः ॥ २८२ ॥
गंगा नदी के काठे पर काशी नामक एक उत्तम नगरी है । वह विचित्र और रमणीक है । वहाँ का राजा जितशत्रु था । वहाँ चुलनीपिता नामक एक धनाढ्य गृहस्थ
रहता था ।
Jain Education International
एकदा उस नगरी में कोष्ठक नामक उद्यान में विहार करते हुए श्री वीर प्रभु पधारे ।
- त्रिशलाका ० प १० / सर्ग ८
(ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव वाणारसी नयी जेणेव कोट्टए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गह ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ||७||
उस काल उस समय में कोष्ठक चैत्य था - वहाँ आये । को भावित करते हुए विचरने लगे
तपणं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसीए नयरीए कोट्ठयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय-विहारं विहरः || १५ ||
--उवा अ ३
श्रमण भगवान् महावीर जहाँ वाराणसी नगरी थी- जहाँ आकर यथारूप अवग्रह धारण कर तपस्या में अपनी आत्मा
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org