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( १५१ ) प्रत्युत्तर में भगवान बोले----यह विद्युन्माली देव आजसे सातवें दिन अपने स्थानसे च्यवन कर तुम्हारे नगर के निवासी धनाढ्य ऋषभदत्त का पुत्र होगा। और बाद में हमारा शिष्य सुधर्मा का जंबू नामक शिष्य होगा। उसको केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद अन्य किसी को भी केवलज्ञान उत्पन्न न होगा।
इसके बाद श्रेणिक ने प्रश्न किया कि--- हे नाथ ! इस देव के च्यवन का समय नजदीक होते हुए भी इस देव का तेज मन्द क्यों नहीं हुआ ? क्योंकि अन्तकाल में देव का तेज मन्द होता है ?
प्रत्युत्तर में भगवान बोले-अभी तो इस देव का तेज मन्द है, पूर्व के पुण्योदय से पहले इससे भी उत्कृष्ट तेज था।
___इस प्रकार प्रश्नोत्तर होने के बाद भगवान सर्वभाषानुसारी वाणी द्वारा पाप को नष्ट करने वाली धर्मदेशना दी। ५ सर्वज्ञ अवस्था के वर्धमान स्वामी के विहार स्थल १. सुरभिपुर पधारे
सुरभिपुर-त्रिशलाका० पर्व १०।सर्ग ३।श्लो२८८ में २६० इतश्च यः सुदंष्ट्राहिकुमारो नौजुषः प्रभोः। उपसर्गानकृतस क्वचिद् ग्रामेऽभवदली ॥१॥ स कृष्याजीवकोऽन्येद्यु: सीरेण कृष्टमुर्वराम् । यावत्प्रवृत्तस्तावन्तं श्रीवीरो ग्राममाययौ ॥२॥
___-त्रिशलाका पर्व१०/सर्ग: जब छद्मस्थावस्था में भगवान वाहण में बैठकर नदी उतरते थे उस समय सुदृष्ट नामक नागकुमारदेव प्रभु को उपसर्ग किये। वह नागकुमार कालान्तर में च्यवन कर किसी ग्राम में खेडुत हुआ। और कृषि कर्म से आजीविका चलाता था। वह हल चला रहा था कि भगवान का सुरभिपुर पदार्पण हुआ । २. सुरभिपुर से विहार कर पोतनपुर पधारे।
एवभाख्याय भगवान् प्रययौ पोतनंपुरम् । मनोरमाभिधोद्याने तबहिः सममासरत् ॥२१॥ प्रसन्नचंद्रो जिनेन्द्र वन्दितुं पोतनेश्वरः । समाजगामाश्रौषीच्चदेशन्यं मोहनाशिनीम् ॥२२॥
-त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग ६
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