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स्युर्दशाश्वर्याण्युयसर्गा यदहंताम् । विमानावतरस्तथा || ३५१||
चमरोत्पातः
परिषदभव्याऽटोत्तरं
शतम् ।
सिद्धा अपरकंकायां कृष्णस्य गमनं तथा ||३५२ || असंयताच स्त्रीतीर्थं हरिवंशकुलोद्भवः । ततोऽसौ संगतोऽर्केन्दु विमानावतरः खलु || ३५३|| -- त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ८
स्वाम्याख्यत् गर्भापहारश्चन्द्रार्क
वे गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया - हे स्वामी ! क्या स्थिर पदार्थ है । क्या स्वयं के स्वभाव से चलित हुए होंगे । क्या जिसमें सूर्य चंद्र के विमान चलित होकर यहाँ आये ।
प्रत्युत्तर में भगवान् ने कहा - इस अवसर्पिणी में दस आश्चर्य हुए हैं
१ - अरिहंत को केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद उपसर्ग ।
२ - गर्भ से हरण
३ - सूर्य चन्द्र के विमान का अवतरण
४ - चमरेन्द्र का उत्पात
५ - अभावी परिषद्
६ - एक समय में उत्कृष्ट अवगाहनावाले १०८ सिद्ध
७ - धातकी खंड की अपरकंका में कृष्ण का गमन
८ - असंयती की पूजा
६ - स्त्री तीर्थंकर
१० - हरिवंशकुलोत्पत्ति
उपरोक्त दस आश्चर्यों में सूर्य-चंद्र के विमान का अवतरण भी आश्चर्ययुक्त हुआ है ।
दस आश्चर्यों में से कौन-कौन से किसके समय में हुए इसका विवरण इस प्रकार है
१ प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के समय में एक साथ १०८ सिद्ध होना ।
२ दसवें तीर्थंकर शीतल के समय में हरिवंश की उत्पत्ति |
३ उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लीका स्त्री के रूप में तीर्थंकर होना ।
४ बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के समय में कृष्ण वासुदेव का कपिल वासुदेव के क्षेत्र ( अपरकंका ) में जाना अथवा दो वासुदेवों का मिलन |
५ चौबीसवें तीर्थंकर महावीर के समय में १ गर्भापहरण, २ उपसर्ग, ३ चमरोत्पाद ४ अमविद् परिषद् ५ चन्द्र और सूर्य का अवतरण ( ये पाँचों क्रमशः हुए हैं । )
नौवें तीर्थंकर सुविधि से सोलहवें तीर्थ कर शांति के काल तक असंयति पूजा |
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