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( ७१ ) ब्रह्मचर्य नामक अध्ययन है--अस्तु प्रथम श्रुतस्कंध की ही पदों की संख्या १८००० कही है परन्तु चूलिका के पद की संख्या नहीं कही है। जैसे कहा है-'नव ब्रह्मचर्य अध्ययन रूप वेद (आचारांग) के अठारह हजार पद हो जाते हैं। और उसकी पाँच चूलिका को साथ लेकर बहुत पद हो जाते हैं।
यहाँ मूल सूत्र के "चूलिका सहित आचारांग सूत्र के, ऐसा विशेषण देकर चूलिका भी साथ में गिनती है। मात्र आचारांग सूत्र चूलिका सहित है, चूलिका रहित नहीं है । अस्तु चूलिका की सत्ता जानने के लिए है।
परन्तु पद का परिमाण कहने के लिए नहीं है जैसा कि नन्दी सूत्र में कहा है-"नव ब्रह्मचर्य रूप अतस्कंध का प्रमाण १८००० पद है। सूत्रों का अर्थ विचित्र प्रकार का होता है अतः उसका अर्थ गुरू के उपदेश से जानने योग्य है ।
.३ समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेजाए चउप्पन्नाई वागरणाई वागरित्था।
-सम० सम० ५४/सू ३/४ ८८८ भमण भगवान महावीर स्थामी एक ही दिन एक ही आसन पर बैठकर चोपन व्याकरण प्रश्नोत्तर कहे थे।
नोट-किसी का प्रश्न हो फिर उसका उत्तर रूप है उसे व्याकृतवान कहा है ।
४. समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं सखुड्डुयविअत्ताणं अट्ठारस ठाणा पन्नत्ता, तंजहा-संगहणी-गाहा ।
वयछक्कं कायछक्कं, अकप्पो 'गिहिभायणं। . पलियंक निसिजाय, सिणाणं सोभवजणं॥
-सम• सम १८/सू ३/पृ० ८५३ टीका--'सखुडुगवियत्ताणं' त्ति सह क्षुद्रकव्यक्तैश्च ये ते सक्षुद्रकव्यक्ताः तेषां, तत्र क्षुद्रका-वयसा श्रुतेन वाऽव्यक्ताः, ब्यक्तास्तु ये वयः श्रुताभ्यां परिणताः, स्थानानि-परिहारसेवाश्रय वस्तूनि 'व्रतषट्क' महाव्रतानि रात्रिभोजनघिरतिश्च 'कायषट्क' पृथिवीकायादि, अकल्पः-अकल्पनीयपिण्डशय्यावस्त्रपात्ररूपः पदार्थः, 'गृहिभाजन' स्थाल्यादिः पर्यको-मंचकादि निषद्यास्त्रिया सहासनं 'स्नान' शरीररक्षालनं 'शोभावर्जन' प्रतीतं । ' श्रमण भगवान महावीर ने बाल-स्थविर आदि सर्व साधुओं के आचार के अठारह स्थान कहे हैं, यथा--
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