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( १३६ ) हरिवंसकुलुप्पत्ती, चमरुप्पात्तो य अट्ठसयसिद्धा । अस्संजतेसु पूआ, दसवि अणंतेण कालेणं॥
-- ठाण० स्था १०/सू १६०
आश्चर्य दस है--- १ उपसर्ग-तीर्थंकरों के उपसर्ग होना । (x) २ गर्भ हरण-भगवान महावीर का गर्भापहरण । (x) ३ स्त्री का तीर्थंकर होना। ४ अभावित परिषद्-तीर्थंकर के प्रथम धर्मोपदेशक की विफलता। (x) ५ कृष्ण का अपरकंका राजधानी में आना । ६ चंद्र और सूर्य का विमान सहित पृथ्वी पर आना । (x) ७ हरिवंश कुल की उत्पत्ति । ८ चभर का उत्पात-चमरेन्द्र का सौधर्म-कल्प में जाना ( प्रथम देवलोक ) (x) ६ एक सौ आठ सिद्ध-एक समय में एक साथ एक सौ आठ व्यक्तियों का मुक्त होना
१० असंयमी की पूजा
-ये दसों आश्चर्य अनंत काल के व्यवधान से हुए हैं
नोट-प्रस्तुत सूत्र में दस आश्चर्यों का वर्णन है । आश्चर्य का अर्थ है-कभी-कभी घटित होने वाली घटना। जो घटना सामान्यतया नहीं होती, किन्तु स्थिति विशेष में अनंतकाल के बाद होती है, उन्हें आश्चर्य कहा जाता है ।
जैन शासन में आदि काल से भगवान महावीर के काल तक दस ऐसी अद्भुत घटनायें घटनायें घटीं, जिन्हें आश्चर्य की संज्ञा दी गई है। ये घटनायें भिन्न-भिन्न तीर्थकरों के समय में घटित हुई है। इनमें १, २, ४, ६ और ८ ( x चिन्ह ) भगवान महावीर से तथा शेष भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों के शासन काल से संबंधित है। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
ठाणण्टीका-आ विस्मयतश्चर्यन्ते अवगम्यन्त इत्याश्चर्याणि - अद्भूतानि, इहच सकारः कारस्करादित्वादिति, 'उवसग्गे' त्यादिगाथाद्वयं, उपसृज्यते क्षिप्यते च्याव्यते प्राणी धर्मादेभिरित्युपसर्गा-देवादिकृतोपद्रवाः ते च भगवतो महावीरस्य छद्मस्थकाले केवलिकालेच नरानरतियकृता अभूवन् , इदंच किल न कदाचिद्भूतपूर्व, तीर्थकरा हि अनुत्तरपुण्यसम्भारतया नोपसर्गभाजनमपि तु सकलनरामरतिरश्चां सत्कारादिस्थानमेवेत्यनन्तकालभाव्ययमर्थों लोकेऽद्भुतभूतइति ॥१॥
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